Monday, May 20, 2024
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Rajasthan: कब है शीतला अष्‍टमी बासोड़ा, जानें तिथि और इसकी खासियत

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India News Rajasthan (इंडिया न्यूज़) Rajasthan: गधे को समाज का सबसे ‘बेवकूफ’ जानवर माना जाता है। इसीलिए जब कोई उनकी तुलना गधे से करता है तो उन्हें गुस्सा आ जाता है. समाज में गधों को हीन भावना से देखा जाता है। इन सबके बावजूद गधे की पूजा की जाती है. दरअसल, शीतला सप्तमी और अष्टमी के दिन महिलाएं गधे के माथे पर हल्दी रोली का तिलक लगाती हैं और उन्हें पकवान खिलाकर उनकी पूजा करती हैं। शीतलाष्टमी चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। होली के 7 दिन बाद इस पर्व को मनाया जाता है।

मान्यता के अनुसार शीतलाष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा की जाती है। शीतलाष्टमी की पूजा को बसौड़ा भी कहा जाता है। इस दिन रात को पकवान बनाकर सुबह शीतला माता की पूजा करके उन्हें बासी भोजन का भोग लगाना चाहिए। पूजा के बाद परिवार के सभी लोग बासी खाना खाते हैं।

गधे की पूजा क्यों की जाती है?

बता दें कि इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है। शीतला माता की पूजा के बाद मंदिर में गधे की भी पूजा करने की परंपरा है। महिलाएं गधे को हल्दी रोली का तिलक लगाकर उसे खिलाने की कोशिश करती हैं। ऐसी मान्यता है कि गधा शीतला माता का वाहन है। इसलिए शीतला माता की पूजा के साथ-साथ उनके वाहन यानी गधे की भी पूजा की जाती है।

नई दुल्हन मंदिर में शीतला माता की पूजा करती है

शीतलाष्टमी का उत्तर भारत में विशेष महत्व माना जाता है। अक्सर गांवों और शहरों में शीतला माता का मंदिर होता है। जहां शीतलाष्टमी पर पूजा-अर्चना की जाती है. कई जगहों पर लड़के की शादी के बाद नई दुल्हन को शीतला माता के मंदिर में ले जाया जाता है और वहां नई दुल्हन पूजा-अर्चना करती है, जिसके बाद ही वह घर का कोई भी काम शुरू करती है।

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बासौड़ा मनाने के पीछे यही मान्यता है

शीतला माता की पूजा करने के बाद बुजुर्ग महिलाएं कहानी सुनाती हैं। कहानी सुनाते हुए बुजुर्ग महिला ने बताया कि एक समय की बात है, एक शहर में सभी लोग गर्म-गर्म पकवान बनाकर माता शीतला की पूजा में लगाते थे। जिससे शीतला माता का मुख जल गया और शीतला माता क्रोधित हो गईं।

पूरे शहर में केवल एक ही बुढ़िया का घर था जो जलने से बचा था। नगरवासियों ने बुढ़िया से पूछा कि उसका घर क्यों नहीं जला? बुढ़िया ने बताया कि मैंने शीतला माता की पूजा के लिए रात को प्रसाद बनाया था और सुबह शीतला माता को बासी प्रसाद का भोग लगाया। जिससे शीतला माता ने मेरा घर जलने से बचा लिया।

सभी नगरवासियों ने शीतला माता से क्षमा मांगी और आने वाली सप्तमी और अष्टमी तिथि को शीतला माता का बासौड़ा पूजन करने का निर्णय लिया। तभी से होली के बाद आने वाली सप्तमी अष्टमी को बासौड़ा में शीतला माता की पूजा कर मनाया जाता है।

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वैज्ञानिक उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है

शीतला माता के व्रत और पूजन को वैज्ञानिक पर्व भी कहा जाता है। होली की शीतला अष्टमी से ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ होता है। इसलिए यह त्योहार बताता है कि शीतला अष्टमी के बाद बासी खाना नहीं खाना चाहिए और न ही गर्म पानी से स्नान करना चाहिए. चैत्र माह से गर्मी शुरू हो जाती है और शरीर में कई तरह के विकार उत्पन्न हो जाते हैं।

इसलिए मनुष्य को चेचक जैसी बीमारियों से बचाने के लिए शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का व्रत और पूजा करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। शीतला अष्टमी का व्रत और पूजन शारीरिक शुद्धता, मानसिक शुद्धता और ग्रीष्म ऋतु में खान-पान में शुद्धता और सावधानियों का संदेश देता है।

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