Monday, May 20, 2024
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Sporta Technologies in Insolvency: दिवालिया हुई Dream 11 की पैरेंट कंपनी, NCLT ने मंजूर की याचिका

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India News (इंडिया न्यूज़), Sporta Technologies in Insolvency: नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) की मुंबई पीठ ने 7.6 करोड़ रुपये से अधिक के किराया चूक के लिए गेमिंग यूनिकॉर्न ड्रीम11 की मूल कंपनी स्पोर्टा टेक्नोलॉजीज के खिलाफ दिवालिया याचिका स्वीकार कर ली है।

रिवार्ड सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड ने दायर की था याचिका

रिवार्ड सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड की ओर से पीयूष जानी द्वारा दिवाला याचिका दायर की गई थी। अदालत में दाखिल दस्तावेजों के अनुसार, रिवार्ड सॉल्यूशंस ने 2019 में मुंबई के एक बिजनेस पार्क में एक टावर में दो इकाइयों के लिए स्पोर्टा टेक्नोलॉजीज के साथ पांच साल की लीज और लाइसेंस एग्रीमेंट किया था। समझौते में शुरुआती तीन वर्षों के लिए मासिक लाइसेंस शुल्क 49.8 लाख रुपये और अगले दो वर्षों के लिए 57.3 लाख रुपये निर्धारित किया गया था। इसमें 33 महीने की लॉक-इन अवधि भी तय की गई थी। स्पोर्टा टेक्नोलॉजीज 27 सितंबर 2022 तक समझौते को समाप्त नहीं कर पाई थी।

क्या थी वजह?

रिवार्ड सॉल्यूशंस ने बताया कि स्पोर्टा टेक्नोलॉजीज ने समझौते की शुरुआत से ही लाइसेंस शुल्क के भुगतान में लगातार चूक की है। जिस वजह से कंपनी ने अप्रैल 2021 में स्पोर्टा टेक्नोलॉजीज को इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी (एडज्यूडिकेटिंग अथॉरिटी के लिए आवेदन) नियम, 2016 के तहत कुल 7.61 करोड़ रुपये की बकाया लाइसेंस फीस का हवाला देते हुए एक डिमांड नोटिस भेजा। याचिका के अनुसार, ड्रीम11 की पैरेंट कंपनी डिमांड नोटिस का पालन करने में विफल रही। जिस वजह से रिवार्ड सॉल्यूशंस को दिवालिया याचिका दायर की।

बातचीत करने का अवसर खो चुकी है स्पोर्टा टेक्नोलॉजीज

जवाब में, स्पोर्टा टेक्नोलॉजीज ने दावा किया कि उसने कोविड-19 महामारी के प्रभाव और तीसरे पक्ष, मंगलम वाणिज्य प्राइवेट लिमिटेड के साथ स्वामित्व के बारे में भ्रम के कारण फीस पर बातचीत करने का अवसर खो दिया। कंपनी ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जारी एक अनंतिम कुर्की आदेश के बारे में भी बात की है।

NCLT ने मंजूर की याचिका

NCLT की न्यायिक मेंबर रीता कोहली और तकनीकी मेंबर मधु सिन्हा ने मदन बजरंग लाल को अंतरिम रेजोल्यूशन प्रोफेशनल नियुक्त किया है। NCLT का कहना है कि स्पोर्टा टेक्नोलॉजीज के खिलाफ दायर याचिका सभी कानूनी जरुरतों को पूरा करती है और इसे नियमों के मुताबिक ही 3 साल की सीमा अवधि के भीतर दायर किया गया है। जिसके बाद NCLT ने याचिका को मंजूरी कर लिया है।

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