India News (इंडिया न्यूज़), International Epilepsy Day 2024: एपिलेप्सी यानी मिर्गी दिमाग से जुड़ी एक गंभीर समस्या है। दुनियां में करीब 5 करोड़ से भी ज्यादा लोग इससे प्रभावित है। वैसे को ये बिमारी किसी भी उम्र के बच्चे को हो सकती है लेकिन इसके ज्यादातर मामले बच्चों में देखे गए हैं। ये एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जिसके चलते हमारे शरीर में कई और बीमारियां भी जन्म ले सकती हैं। ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसके बारे में पता चले उसके लिए हर साल फरवरी के दूसरे सोमवार को एपिलेप्सी डे के तौर पर मनाया है।
मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो दुनिया भर में लगभग 50 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है। इसमें व्यक्ति को अचानक दौरे आने शुरू हो जाते हैं, और ज्यादा गंभीर होने पर मुंह से छाग निकलना शुरू हो जाता है। कई बार लोग इसे भूत प्रेत के साथ जोड़ देते हैं। ऐसे में मिर्गी के ग्रस्त व्याक्ति को कई मांसिक कठिनाईयों का सामना भी करना पड़ता है। ये दौरे हमारे दिमाग में हो रहे इलेक्ट्रिकल डिस्चार्ज के चलते आते हैं।
मिर्गी संक्रामक नहीं है। वैश्विक स्तर पर लगभग 50% मामलों में बीमारी का कारण अभी भी अज्ञात है। मिर्गी के दौरे की कई वजह हो सकती हैं। जिनमें
मिर्गी का दौरा पड़ने पर शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है और मरीज हाथ और पैरों को मोड़ते हुए जमीन पर गिर जाता है। दांतों को भींचने या जोर जोर से हाथ हिलाने जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं। ज्यादातर मामलों में मिर्गी के दौरे सुबह के समय ज्यादा आते हैं। मिर्गी 5 से 15 साल और 70 से से 80 साल के बीच विकसित होती है, हालांकि जन्मजात ये बीमारी 5 से 10 प्रतिशत मामलों में ही देखी जाती है। मिर्गी के लक्षण अलग अलग स्थितियों पर निर्भर करते हैं। मिर्गी से पीड़ित लोगों में अधिक शारीरिक समस्याएं (जैसे फ्रैक्चर और दौरे से संबंधित चोटों से चोट लगना) होती हैं, साथ ही चिंता और अवसाद सहित मनोवैज्ञानिक स्थितियों की दर भी अधिक होती है। इसी तरह, मिर्गी से पीड़ित लोगों में समय से पहले मौत का जोखिम सामान्य आबादी की तुलना में तीन गुना अधिक है।
मिर्गी के 60-70 फीसदी मामले दवाओं से ही ठीक हो जाते हैं। इसके प्रकार और गंभीरता को देखते हुए मरीज को 2-3 साल तक इसकी दवाईयां खाने की जरूरत पड़ती है, जिसके बाद वो ठीक हो जाता है, लेकिन कुछ मामलों में रोगी को जीवनभर दवाईयां खानी पड़ती हैं। डॉक्टर का मानना है कि इससे बचाव के लिए हेल्दी डाइट लेनी चाहिए। इसमें बहुत ज्यादा कार्ब्स वाले खाना खाने से बचना चाहिए। बाहर का जंक फूड और मसालेदार तलाभुना खाना इस बीमारी को बढ़ा सकता है इसलिए घर का सादा खाना ही खाना चाहिए। इसके अलावा रोजाना एक्सरसाइज और योगा करना भी असरदार शाबित हो सकता है।
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