India News Rajasthan (इंडिया न्यूज़), Rajasthan Diwas: अभिनेता गौरव देवासी ने अपने संदेश में कहा कि ‘राजस्थान’ नाम ही मन में गौरव की अनुभूति कराने वाला है। भक्ति और शक्ति का संगम यह वह प्रदेश है, जहां के कण-कण में त्याग, तपस्या और बलिदान की गाथाएं समाहित है।
राजस्थान महाराणा प्रताप की शौर्य धरा है। मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व दान करने वाले भामाशाह की यह भूमि है। पन्नाधाय के त्याग और बलिदान की अनूठी गाथा अपने में संजोए यह धरती रामदेवजी, गोगाजी, मां करणी जैसे लोक देवी-देवताओं और मीरा, दादू, संत पीपा जैसे संत-महात्माओं की पुण्य धरा है।
यह वह वीर भूमि है, जहां स्वतंत्रता का बीज कभी मुरझाया नहीं। राजस्थान स्थापना दिवस मात्र एक दिवस नहीं है। यह दिवस सद्भाव की हमारी संस्कृति को सहेजने का है। संकल्पित होकर राजस्थान के सर्वांगीण विकास में सभी की भागीदारी सुनिश्चित करने का है। राजस्थान दिवस पर प्रदेश के चहुंमुखी विकास का संकल्प लेते हुए इसे देश का अग्रणी राज्य बनाने में सभी-जन सहभागी बनें।’
राजस्थान फिल्म इंडस्ट्री के अभिनेता गौरव देवासी ने बताया कि मुड़िया, महाजनी ये सब हमारी लिपियां रही हैं। लेकिन जिस तरह 8वीं अनुसूची में 10 भाषाएं देवनागरी में लिखी जाती हैं, उनमें एक और राजस्थानी भी जुड़ जाए। अगर अब 8 करोड़ राजस्थानियों की भाषा को सम्मान नहीं मिलता तो परिणाम सरकार की जिम्मेदारी होगी।
गौरव ने बताया था कि मेवाती, बृज का भी राजस्थानी में बेहद ही महत्त्व है।उन्होंने युवाओं को समझाते हुए बताया था कि जब मेवाड़ के राजा का लिखा खत हसन खां मेवाती समझ सकता है तो इसका मतलब है राजस्थानी एक ही भाषा है, अलग-अलग इलाके की कई बोलियां इसमें शामिल हैं।
हिंदी के लिए राजस्थान ने दिया बलिदान : प्रमोद शर्मा बताते हैं कि मातृभाषा का अर्थ है मां की भाषा, यानी यह जीवन की पहली भाषा है, जो हम अपनी बचपन से सीखते हैं। आमतौर पर जो भाषा घरों में बोली जाती है, जिसे हम बचपन से सुनते हैं उसे मातृभाषा कहते हैं। देश में हजारों मातृभाषा हैं, क्योंकि हर छोटे-छोटे क्षेत्र में अलग-अलग तरह की भाषाएं बोली जाती हैं।
मुख्य रूप से देश में संस्कृत, हिंदी, उर्दू, पंजाबी, बांग्ला, भोजपुरी, इंग्लिश समेत तमाम ऐसी भाषाएं हैं, जो प्रचलित हैं, लेकिन मातृभाषा इससे भिन्न ही होती है। देश के कई राज्यों में हिंदी भाषा बोली जाती है, लेकिन इन राज्यों में भी मातृभाषा अलग-अलग हो सकती है। राजस्थान में भी राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के लिए लम्बे समय से मांग उठती रही है।राजस्थानी भाषा विश्व की 25वीं एवं भारत की तीसरी साहित्य समृद्ध भाषा है। इसे अति शीघ्र संवैधानिक मान्यता मिलनी चाहिये।
हर राज्य में एक अपनी भाषा का महत्वपूर्ण योगदान रहता हे पर राजस्थान राज्य अनेक विचित्र भाषा व राज्य भाषा राजस्थानी की मान्यता नहीं मिलने की वजह से राजस्थानी सिनेमा अपनी धीमी गति से और भी पीछे जा रहा है।
राजस्थान में होने वाली शूटिंग में राजस्थानी भाषा को बोला जाता है और लोगो द्वारा इन्हे काफी अच्छी रेटिंग भी दी जाती है पर।
राजस्थानी भाषा स्वतंत्र विशाल तथा विविध प्रकार के साहित्यिक स्वरूपों से सम्पन्न भाषा है। इसका अपना व्याकरण है। इस तथ्य को विश्व के प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिकों, विद्वानों तथा साहित्यकारों ने सहर्ष स्वीकार किया है। विख्यात इतिहास ग्रंथों व ज्ञान कोषों में इसकी विशिष्टता दर्शाई गई है। यह गुजरात, पंजाब, हरियाणा और मध्यप्रदेश के साथ-साथ पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में भी बोली जाती है।
राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता ना मिलने की वजहों में से सबसे बड़ी वजह इसकी लिपि न होना है। इसके अलावा राजस्थान में भी राजस्थानी भाषा को लेकर एक राय नहीं है। क्योंकि राजस्थान के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषाएं बोलियां बोली जाती हैं। राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में मारवाड़ी बोली बोली जाती है, जिसमें जैसलमेर, जोधपुर, पाली, नागौर जिले आते हैं। वहीं, कोटा, झालावाड़, बूंदी और बारां जिलों में हाड़ौती बोली बोली जाती है।
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भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची के आर्टिकल 344 (1) और 351 में 22 ऑफिशियल भाषाओं का जिक्र है। साल 1950 में 14 भाषाओं को आधिकारिक भाषा की सूची में डाला गया। उसके बाद 1967 में सिंधी और 1992 में चार भाषाओं कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषाओं को भी आधिकारिक भाषा की सूची में शामिल किया गया। वहीं, आखिरी बार 2004 में चार भाषाओं बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली को भी आधिकारिक भाषाओं की लिस्ट में शामिल किया गया था।
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