India News ( इंडिया न्यूज ) Ajab – Gajab: दुनिया में अनेकों दिलचस्प कहानियां है। ऐसी ही एक कहानी भारत की आजादी से पहले की भी है। जिसको सुनकर आप चौक जाएंगे। आजादी से पहले भारत में 600 से भी ज्यादा देशी रियासतें थीं। जिसमे से ज्यादे रियासतें भारत में मिल गई। लेकिन तीन रियासतें हैदराबाद, जम्मू-कश्मीर और जूनागढ़ अगल होना चाहती थी।
उस माउंटबेटन की सलाह पर हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली ने साफ इंकार कर दिया था। उन्होंने ब्रिटेन से कहा कि इसको एक स्वतंत्र देश मान लें। वही कश्मीर के महाराजा हरि सिंह भी दोनों में से किसी भी राज्य में शामिल नहीं होना चाहते थे। इसके अलावा जूनागढ़ के नवाब महाबत खां भी इसको लेकर मना कर रहे थे।
नवाब महाबत खान (Nawab Mahabat Khan) के वंशज अफगानिस्तान से आए और मुगलों के लिए कई लड़ाइयों में भाग लिया। बाद में उनकी वफादारी से खुश होकर मुगलों ने जूनागढ़ की रियासत महाबत खान के पूर्वजों को उपहार स्वरूप सौंप दी। जूनागढ़ की जनसंख्या लगभग 80 प्रतिशत हिन्दू थी। बंबई के उत्तर में स्थित जूनागढ़ के नवाब को कुत्तों से एक अजीब शौक था।
नवाब (Junagarh Nawab Mahabat Khan) के पास विभिन्न नस्लों के 1000 से अधिक कुत्ते थे। जिन घरों में उनके प्यारे कुत्तों को रखा जाता था वहां टेलीफोन और बिजली की सुविधा के साथ-साथ नौकर भी होते थे। हर कमरे में एसी जैसी सुविधाएं भी थीं।
इतिहासकार डोमिनिक लैपिएरे और लैरी कॉलिन्स ने अपनी पुस्तक “फ्रीडम एट मिडनाइट” में लिखा है कि जूनागढ़ के नवाब ने अपने कुत्तों के लिए जो घर और विलासिता की चीजें बनाईं, वे केवल कुछ अमीर लोगों के लिए ही उपलब्ध थीं। जब भी नवाब का कोई कुत्ता मर जाता था तो उसके शव को कुत्तों के कब्रिस्तान में ले जाया जाता था। अंतिम संस्कार के जुलूस में शोक संगीत बजाया गया और उनकी कब्र पर एक संगमरमर का मकबरा बनाया गया।
नवाब का पसंदीदा कुत्ता “बाकी” नाम का लैब्राडोर था। उन्होंने इस कुत्ते की शादी अपनी प्रिय कुतिया ‘रोशाना’ से इतनी धूमधाम से की कि इसमें भारत के सभी राजाओं और प्रतिष्ठित लोगों को आमंत्रित किया गया। विशिष्ट अतिथियों में वायसराय का नाम भी शामिल था। बाद में जब वायसराय माउंटबेटन ने आने से इनकार कर दिया तो नवाब बहुत परेशान हुए।
डोमिनिक लैपिएरे और लैरी कॉलिन्स लिखते हैं कि उस शादी में 1।5 लाख मेहमान आए थे। आगे-आगे नवाब साहब के अंगरक्षकों और उनके सजे हुए हाथियों का जुलूस चल रहा था। बारात के बाद नवाब साहब ने दूल्हा-दुल्हन के सम्मान में एक भव्य भोज का आयोजन किया, जिसके बाद नवविवाहित जोड़े को उनके बेहद खूबसूरत नए घर में ले जाया गया। इस पूरे उत्सव पर नवाब साहब ने नौ लाख रुपये खर्च किये थे, जिससे उनकी 6,20,000 जनता में से 12,000 की पूरे साल की बुनियादी ज़रूरतें पूरी हो सकती थीं।
जब विलय की बात चली तो नवाब ने भारत में शामिल होने से इंकार कर दिया। लैपिएरे और कोलिन्स लिखते हैं कि मुस्लिम लीग के किसी गुर्गे ने जूनागढ़ के शासक को समझाया था कि स्वतंत्र भारत में सबसे पहला काम उसके कुत्तों को जहर देना होगा। इसलिए नवाब ने निर्णय लिया कि या तो वह स्वतंत्र रहेगा या पाकिस्तान में शामिल हो जायेगा। इस तथ्य के बावजूद कि हिंदू आबादी वाली उनकी छोटी रियासत की पाकिस्तान के मुस्लिम राज्य के साथ कोई सीमा नहीं थी
जूनागढ़ में जनमत संग्रह कराया गया। कुल 2,01,457 पंजीकृत मतदाताओं में से 1,90,870 लोगों ने मतदान किया। पाकिस्तान के पक्ष में सिर्फ 91 लोगों ने वोट किया। इस जनमत संग्रह के बाद यह साफ हो गया कि जूनागढ़ के लोग भारत में ही रहना चाहते हैं। उन्होंने नवाब के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। लोगों का गुस्सा देखकर नवाब अपने निजी विमान से पाकिस्तान भाग गये। वह अपने पसंदीदा कुत्तों को भी अपने साथ ले गए। अपनी दोनों पत्नियों को यहीं छोड़ दिया।
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