सबसे बड़ा अंतर पैदा किया शीर्ष नेतृत्व के फैक्टर ने, BJP की ओर से तीनों राज्यों में लोकल लीडरशिप जमीन पर काम कर रही थी तो वहीं प्रचार से लेकर रणनीति तक, शीर्ष नेतृत्व फ्रंट से लीड करता नजर आया, वहीं कांग्रेस में इसके ठीक उलट तस्वीर नजर आई, कांग्रेस में हाईकमान को इग्नोर कर तीनों राज्यों में लोकल लीडरशिप की ही चली, MP में टिकट वितरण से लेकर गठबंधन, प्रचार रणनीति तक से जुड़े सभी फैसलों पर कमलनाथ की छाप साफ नजर आई, कांग्रेस इंडिया गठबंधन के अपने गठबंधन सहयोगी समाजवादी पार्टी के साथ अंतिम समय सीट शेयरिंग पर बातचीत करती रही और दूसरी तरफ कमलनाथ की जिद के चलते हर सीट पर कैंडिडेट उतार दिए, इंडिया गठबंधन की पहली साझा रैली भी भोपाल में होनी थी लेकिन कमलनाथ ने इसमें भी अड़ंगा लगा दिया, राहुल गांधी और कांग्रेस नेतृत्व ने चुनाव रणनीतिकार सुनील कानूगोलू की टीम की सेवा लेने को कहा तो कमलनाथ ने इसके लिए भी मना कर दिया।
छत्तीसगढ़ में भी कहानी कुछ ऐसी ही थी छत्तीसगढ़ के CM भूपेश बघेल को सबसे बड़ा OBC फेस तक कहा जाने लगा था, BJP के राष्ट्रवाद की काट के लिए छत्तीसगढ़िया अस्मिता के बघेल दांव में विपक्ष देश की सत्ता पर काबिज दल को रोकने का फॉर्मूला तलाशने लगा था, कांग्रेस को इस आदिवासी बाहुल्य राज्य में भी कांग्रेस को हाईकमान का इग्नोर होना भारी पड़ा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़, तीनों ही राज्यों में अशोक गहलोत, कमलनाथ और भूपेश बघेल फ्रीहैंड होकर चुनाव अभियान की बागडोर थामे थे।
2- काम ना आई चुनावी वादे और योजनाएं
कांग्रेस की हार के पीछे एक बड़ा फैक्टर चुनावी वादे और योजनाएं भी रहे, कांग्रेस सरकार की योजनाएं कॉपी लगी हीं, इनमें कोई भी स्कीम ऐसी नहीं थी जिसमें जनता तक सीधा पैसा पहुंचता हो, गहलोत ने चिरंजीवी योजना शुरू की, इंश्योरेंस की रकम डबल करने, महिलाओं को 10 हजार रुपये सालाना देने, MSP को लेकर कानून बनाने का वादा किया, वहीं BJP ने कम से कम 6 लाख महिलाओं को लखपति दीदी बनाने, किसान सम्मान निधि का पैसा दोगुना करने और किसानों की नीलाम हुई जमीन वापस कराने का वादा किया, फर्क ये रहा कि किसान सम्मान निधि का पैसा लोगों को पहले से ही मिल रहा है, जनता ने भविष्य के सुनहरे सब्जबाग की जगह वर्तमान पर यकीन किया।
3- हर राज्य में कांग्रेस के 2 प्रमुख चेहरे थे
कांग्रेस की हार के पीछे एक बड़ा फैक्टर गुटबाजी भी रहा. MP में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह तो राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट की खींचतान ने कांग्रेस को डैमेज किया, छत्तीसगढ़ में भी कहानी कुछ ऐसी ही थी, विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले तक CM भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव दिल्ली की दौड़ लगाते रहे, चुनाव में जब 6 महीने से भी कम समय बचा था, टीएस सिंहदेव को बघेल सरकार में डिप्टी CM बनाया गया, तीनों ही राज्यों में अंतर्कलह का भी मतदाताओं के बीच गलत संदेश गया और कांग्रेस को चुनाव नतीजों में इसका नुकसान उठाना पड़ा।
4- सॉफ्ट हिंदुत्व से कंफ्यूजन
सॉफ्ट हिंदुत्व कांग्रेस की हार के पीछे उसके फॉर्मूले को भी बताया जा रहा है, कांग्रेस के सॉफ्ट हिंदुत्व को लेकर भ्रम की स्थिति बनी MP कांग्रेस कमलनाथ को हनुमान भक्त बताती रही तो वहीं कमलनाथ बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री से लेकर पंडित प्रदीप मिश्रा तक की कथा कराने में लगे रहे, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल भी राम वन गमन पथ जैसी परियोजनाओं के साथ सॉफ्ट हिंदुत्व की राह चलते नजर आए, कहा जा रहा है कि कांग्रेस को इसका भी नुकसान उठाना पड़ा, तर्क ये दिए जा रहे हैं कि हिंदुत्व के नाम पर जिसे वोट देना है, वह BJP के साथ जाएगा कि डुप्लिकेट के साथ।
5- वोटों का ध्रुवीकरण
कांग्रेस को वोटों के ध्रुवीकरण का भारी नुकसान हुआ, BJP ने राजस्थान में कन्हैयालाल हत्याकांड, जोधपुर दंगे जैसी घटनाओं को चुनाव प्रचार के दौरान खूब उछाला, PM मोदी से लेकर UP के CM योगी आदित्यनाथ तक, BJP के लगभग हर बड़े नेता ने इन मुद्दों को लेकर कांग्रेस पर जमकर वार किए और तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया, इसी तरह MP में प्रचार की शुरुआत से BJP की रणनीति उदयनिधि स्टालिन के बयान को आधार बनाकर कांग्रेस की सनातन विरोधी इमेज बनाने की रही, BJP ने उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर, सागर में रविदास मंदिर, परशुराम जन्मस्थली जानापाव में परशुराम मंदिर समेत कई मंदिर और कॉरिडोर बनवाए।
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