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Guruvaar Vrat: कब से और कितने गुरुवार रखें व्रत? जानें पूजा की विधि और शुभ समय

• LAST UPDATED : December 28, 2023

India News (इंडिया न्यूज़), Guruvaar Vrat: गुरुवार का दिन श्री हरि विष्णु जी को समर्पित किया गया है। इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करना अति शुभ माना गया है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक यदि किसी शख्स की कुंडली में गुरु मजबूत नहीं है या फिर शादी में कई अड़चनों आ रही है, तो गुरुवार का व्रत काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। इसके साथ ही ज्योतिषी द्वारा अविवाहित लोगों के लिए भी गुरुवार का व्रत रखने की सलाह दि जाती है। मान्यता है कि गुरुवार का व्रत करने से आपकी सारी परेशानियां हल हो जाती है। इसके साथ ही कुंडली का कमज़ोर गुरु ग्रह मजबूत होता है।

कब शुरू करें गुरुवार का व्रत?

धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, गुरुवार के व्रत की शुरुआत पौष के महिने को छोड़कर किसी भी महीने में की जा सकती है। परंतु इसे उस मास से शुक्ल पक्ष के पहले बृहस्पतिवार के दिन से ही शुरु करें।

कितने गुरुवार व्रत रखना होगा शुभ?

भगवान विष्णु तथा बृहस्पति देव की कृपा पाने के लिए आपको लगातार 16 गुरुवार का व्रत रखना होगा। वहीं, 17वें गुरुवार को व्रत का उद्यापन करें। मासिक धर्म के कारण महिलाएं ये व्रत नहीं कर सकती। गुरुवार का व्रत आप 1,3,5,7 या 9 साल एवं फिर आजीवन भी रख सकते हैं।

व्रत की पूजा विधि

  • इस दिन सूर्योदय से पहले उठें। उसके बाद सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करले।
  • स्नान के बाद आप पीले रंग के वस्त्र पहने।
  • उसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए, व्रत संकल्प लें।
  • फिर बृहस्पति देव की पूरे विधि-विधान से पूजा करें।
  • भगवान को पीले फूल, पीले चंदन के साथ-साथ पीले रंग का भोग लगाएं। यदि आपका मन हो तो चने की दाल या गुड़ का भोग लगाएं।
  • फिर धूप, दीप इत्यादि जलाकर बृहस्पति देव की व्रत कथा का पाठ करें।
  • जिसके बाद पूरे विधि-विधान से आरती करके, अपनी सभी गलतियों की माफी मांगें।
  • केले की जड़ में जल अर्पण करने के साथ भोग भी लगाएं।
  • अब दिनभर फलाहार व्रत रखें। जिसके बाद शाम को पीले रंग का भोजन ग्रहण करें।

बृहस्पति भगवान की आरती

जय बृहस्पति देवा, ऊँ जय बृहस्पति देवा ।

छिन छिन भोग लगाओ, कदली फल मेवा ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।

जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।

सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।

प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।

पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।

विषय विकार मिटा‌ओ, संतन सुखकारी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

जो को‌ई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे ।

जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

सब बोलो विष्णु भगवान की जय , बोलो बृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥

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