(इंडिया न्यूज) जयपुर: (Mirza Ghalib was a famous poet) मीर्जा गालिब का नाम अक्सर शेर-ओ-शायरीयों मे सुनने को मिला होगा दरअसल मिर्जा गालिब उर्दू और फारसी के महान शायर कहे जाते है, उनका पूरा नाम असद-उल्लाह बेग़ ख़ां उर्फ “ग़ालिब” था, ग़ालिब मुग़ल साम्राज्य के अंतिम शासक बहादुर शाह ज़फ़र के समकालीन और दरबारी कवि थे.
आप ये जरुर सोच रहे होंगे कि आज हम मिर्जा गालिब की बात क्यों कर रहे है शेर-ओ-शायरी के सरताज कहे जाने वाले उर्दू और फारसी भाषाओं मे शायर ग़ालिब का आज पुण्यतिथि है। गालिब अपनी उर्दू गजलों के लिए काफी मशहूर हैं उनकी कविताओं और गजल लोगों के दिलो पर आज भी जिन्दा है।
गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुआ था और उन्होंने 11 साल की उम्र में ही शेर-ओ-शायरी शुरू कर दी थी. 13 वर्ष की उम्र में शादी करने के बाद वह दिल्ली जा बसे, फिर वही से उनकी शायरी में दर्द की गूफ्तगू दिखने लगी और उनकी शायरी से यह पता चलता है कि उनकी जिंदगी एक अनवरत संघर्ष से भरी हुई थी,
ग़ालिब सिर्फ शेर-ओ-शायरी के बेताज बादशाह ही नही थे बल्कि उनके द्वारा अपने दोस्तों को लिखी गयी चिट्ठियों का भी ऐतिहासिक महत्व हैं, उर्दू में ग़ालिब के योगदान को उनके जीवित रहते हुए कभी उतनी शोहरत नहीं मिली जितनी उनकी इस दुनिया से चले जाने के बाद मिली।
जब दिल्ली से मुसलमान बाहर की तरफ जा रहे थे तब मिर्ज़ा नही गयें ऐसे मे अंग्रेज कर्नल ने मिर्ज़ा ग़ालिब के कपड़े देखकर उनसे सवाल किया कि क्या आप मुसलमान हैं? अंग्रेज कर्नल को जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि मैं आधा मुसलमान हूं, ये जवाब सुनकर अंग्रेज कर्नल ने फिर सवाल किया और पूछा कि आधे मुसलमान कैसे इसके जवाब में मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा क्योंकि मैं शराब तो पीता हूं, लेकिन सुअर नहीं खाता मिर्ज़ा ग़ालिब का यह जवाब सुनकर अंग्रेज कर्नल हक्का बक्का रह गये।