इंडिया न्यूज़, Rajasthan News: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद और राज्य विधानसभाओं के अंदर जनप्रतिनिधियों के अनुचित आचरण को लेकर कहा कि उस आचरण से वे जनता के सामने हंसी का पात्र बनते जा रहे हैं। इसके साथ ही इस मुद्दे पर चिंतन करने का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा कि देश और समाज की भलाई के लिए इसका अंत होना चाहिए।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में हमारे जनप्रतिनिधियों का आचरण अनुकरणीय होना चाहिए। संविधान के संस्थापकों ने इसकी उम्मीद की थी। लेकिन आज की स्थिति बहुत गंभीर और चिंताजनक है। चिंता का कारण यह है कि अमानवीय आचरण सभी सीमाओं को पार कर गया है। यह जानने के लिए कि संसद या विधानसभा में अपनी बात रखते हुए जनप्रतिनिधियों का ऐसा आचरण कैसे हो सकता है। वे जनता के सामने हंसी का पात्र बन गए हैं।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा देश और समाज की भलाई के लिए इस गंभीर स्थिति पर हर स्तर पर व्यापक चिंतन का समय आ गया है। और इसका अंत होना चाहिए। यह एक चुनौती बन गई है कि जिन्हें संसद और विधानसभा पर चर्चा करनी चाहिए, वे सड़कों पर आ गए हैं।
उन्होंने अपने बात को जारी रखते हुए कहा कि इस बीमारी का इलाज अनुशासन और संविधान के अनुसार काम करना है। सन् 1960 के दशक में जिस संसदीय गरिमा को बनाए रखा गया था, उसका अध्ययन करने पर पता चलेगा कि आज ऐसा कुछ नहीं है।
इस बीमारी को रोकना नागरिकों की जिम्मेदारी है। इस बीमारी का इलाज बहुत आसान है कि हमें अनुशासित रहना होगा और कानून की सीमा के भीतर रहना चाहिए और संविधान के अनुसार काम करना चाहिए। हमारा लोकतंत्र चरमरा रहा है। यह उन लोगों के कार्यों के कारण डगमगा रहा है जो लोकतंत्र के रक्षक होने चाहिए। इस अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे पर राजनीतिक दलों को एक साझा मंच पर आने की जरूरत है।
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