अजीत मैंदोला, जयपुर:
Vasundhara Raje : राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे(Vasundhara Raje) के 8 मार्च के जन्मदिन समारोह पर बीजेपी की विशेष नजरें लगी है। राजे के जन्मदिन समारोह को शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि राजे देव दर्शन के नाम पर तीर्थ यात्राएं एंव कार्यक्रम कर बीच बीच में अपने विरोधियों को अपनी ताकत का अहसास कराती रही हैं। इस बार उन्होंने अपने जन्मदिन समारोह के लिये हाड़ौती के केशवरायपाटन को चुना है। वहाँ पर मंदिर प्रांगण में कार्यक्रम कर भगवान कृष्ण के दर्शन करेंगी।
राजे समर्थक उनकी धार्मिक यात्राओं और समारोहों को गैर राजनीतिक बताते हैं, लेकिन विरोधियों को कहीं ना कहीं सन्देश दिया जाता है। उनके किसी भी कार्यक्रम को सफल बनाने के लिये उनके समर्थक विधायक और नेता प्रदेश भर में सक्रिय हो जाते हैं। हालांकि चुनाव के लिये अभी पूरे डेढ़ साल हैं, लेकिन बीते साढ़े तीन साल में राजे को राज्य की राजनीति में अलग थलग करने की कोशिशें लगातार की जाती रही हैं। पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के बाद भी उनको उनकी पार्टी में उपेक्षित किया गया। उनके सांसद बेटे दुष्यंत सिंह के आवास पर हुए हमले को लेकर भी पार्टी चुप रही। राजे ने पार्टी बैठक में अपनी नाराजगी भी जताई। (Vasundhara Raje)
दरअसल प्रदेश में बीजेपी की नई टीम के गठन के बाद से ही राजे को साइड करने की कोशिशें शुरू हुई। प्रदेश बीजेपी को कहीं ना कहीं दिल्ली से कुछ नेताओं का समर्थन मिलता रहा है। अलग थलग करने की कोशिशों के बीच भी राजे ने राज्य में अपने समर्थकों पर पकड़ और मजबूत बनाई। इसमें कोई दो राय नही है कि राजे बीजेपी की एक मात्र अकेली नेता हैं जिनके हर जिले में अपने समर्थकों की एक टीम है। राजे ने दो दशक पहले ऐसे समय पर प्रदेश बीजेपी की कमान संभाली थी जब भैरोसिंह शेखावत को उप राष्ट्रपति बनाने के बाद राज्य में कोई दमदार नेता नही था। उस समय भी बड़े सवाल उठे थे।
लेकिन वसुंधरा राजे ने प्रदेश की कमान संभाल अपने तरीके का अलग प्रचार कर विरोधियों को चित्त कर दिया था। 2003 में बीजेपी ने उनके नेतृत्व में पहली बार बहुमत की सरकार बनाई। लेकिन उनको तब भी बड़ी चुनोतियाँ मिली। विरोधियों ने उनकी छवि को प्रभावित करने की कोशिश की। फिर उन्होंने धीरे धीरे पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत की।हालांकि अगले चुनाव में वह हार गई।लेकिन 2013 के चुनाव में उनकी अगुवाई में पार्टी ने 150 से ज्यादा सीट जीती। उसके बाद उनको दिल्ली से चुनोती मिलने लगी। (Vasundhara Raje)
2018 के चुनाव से पहले उनको बदलने की कोशिश हुई। कई नए चेहरे सामने आने लगे। गजेंद्र सिंह शेखावत और राज्यवर्धन सिंह राठौर जैसे कई नाम सामने आए। लेकिन वसुंधरा ने अपने हिसाब से ही राजनीति की ओर विरोधियों को सफल नही होने दिया। चुनाव जीतने के लिये उन्होंने अकेले ही पूरी ताकत लगाई लेकिन बहुमत के करीब नही पहुंच पाई। बीजेपी का मजबूत केंद्रीय नेतृत्व भी कुछ नही कर पाया। हार के बाद प्रदेश बीजेपी में बड़े बदलाव किए गए। राजे को केंद्र सरकार में जिम्मेदारी संभालने का आॅफर भी दिया गया, लेकिन उन्होंने राज्य की राजनीति को नही छोड़ा। (Vasundhara Raje)
बीते साढ़े तीन साल में राज्य की राजनीति में बड़े उतार चढ़ाव आये। बीजेपी की तरफ से कांग्रेस की गहलोत सरकार को गिराने की कोशिश हुई। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत राज्य की राजनीति में उभर कर सामने आए। सतीश पूनिया की अगुवाई में बनी प्रदेश इकाई एक तरह से गजेंद्र सिंह के साथ खड़ी रही। राजे और उनके समर्थक निशाने पर आ गये। बीजेपी की संस्थापक प्रमुख नेताओं में से एक रही स्व विजयाराजे सिंधिया की बेटी वसुंधरा राजे ने अपने तरीके से राजनीति शुरू की।
उन्होंने चुपी साध अपने कार्यक्रम शुरू कर दिये। राजे ने पूरे प्रदेश में अपने समर्थकों को सक्रिय कर टीम बना ली। इसलिये वह अपने तरीके से अलग तरीके का ऐसा गैर राजनीतिक कार्यक्रम करती हैं जिसको लेकर राजनीति होने लगती है। केशवरायपाटन का भी कार्यक्रम इसी तरह का बन गया। विरोधी परेशान है। कुछ कर पाने की स्थिति में है नही। वसुंधरा समर्थकों की माने तो अब इस तरह के कार्यक्रमो में और बढ़ोत्तरी होगी। आलाकमान को चाहिये कि प्रदेश की कमान राजे को अभी सौंप दे जिससे प्रदेश में बीजेपी के पक्ष में माहौल बने।
उनके एक समर्थक विधायक भवानी सिंह राजावत कहते हैं कि समारोह में लाखों की संख्या में लोग आएंगे। सफल समारोह होने जा रहा है। हालांकि राजस्थान का फैसला पार्टी साल के आखिर तक करेगी ही। लेकिन बहुत कुछ यूपी के चुनाव परिणामो पर निर्भर करेगा। बीजेपी 2017 वाला पुराना प्रदर्शन दोहराती है तो आलाकमान को ताकत मिलेगी। अगर हारे या 250 से कम सीट आई तो चीजें बदलेंगी। (Vasundhara Raje)
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