(इंडिया न्यूज),जयपुर: (45% scorched, two children did not get proper treatment) राजस्थान में दो बच्चो के 45% जलने का मामला सामने आया है। दरअसल 12 फरवरी 2023 को जेके लोन अस्पताल में प्रिंस जोकि 2 वर्ष और मीनाक्षी जो ढाई साल की दोनो बच्चे भर्ती हुए। दोनों के चेहरा-सिर और पीठ 45 प्रतिशत तक जला हुआ था। आपको बता दे कि बच्चे करौली जिले के कुडगांव में एक शादी समारोह के दौरान मैरिज होम की छत पर ग्यारह हजार केवी की बिजली लाइन की चपेट में आ गए थे। जिस कारण दोनो ही बच्चे 45% तक झुलस गए।
बच्चों के ताऊ कमल ने बताया, कि ‘बच्चे कराह रहे थे, हमें उम्मीद थी कि बच्चों का अस्पताल में बेहतर इलाज होगा इसलिए हमने दोनो बच्चो को 12 फरवरी को जेके लोन में भर्ती कराया। लेकिन वहां तो ड्रेसिंग तक नहीं हुई। इसके बाद हमने स्टाफ से पूछा कि यहां तो बर्न यूनिट ही नहीं है, तो इलाज कैसे होगा। जबाव मिला- रेफरेंस भेजा गया है, उनके सजेशन के बाद ही दोनो बच्चो को रेफर किया जाएगा। आखिर में तीन दिन बाद हम निजी अस्पताल में बच्चों को ले गए।
हमारे पास इलाज के लिए पैसे तक नहीं थे, विप्र समाज ने मुहिम चलाकर 8 लाख रुपए हमें दिए जिसके बाद इलाज हुआ और अब दोनों बच्चे खतरे से बाहर हैं।’अब बड़ा सवाल यह है कि एसएमएस में रेफरेंस भेजा गया और वहां से डॉक्टर नहीं आए इसके बावजूद भी जेके लोन अस्पताल का प्रबंधन बच्चों को तीन दिन तक भर्ती क्यों रखे रहा और इस संवेदनहीनता का नतीजा- प्रिंस का पैर और मीनाक्षी का हाथ काटना पड़ा। अपको बता दे कि डॉक्टर्स के अनुसार बच्चों में 20% तक बर्न भी खतरनाक साबित होता है, क्योंकि उन्हें कहीं भी इंफेक्शन हो सकता है। 45% तक जले हुए केस को तुरंत इलाज व दवा न मिलें, तो संक्रमण का खतरा 60 गुना अधिक बढ़ जाता है और बच्चों की जान को खतरा बन जाता है।
डॉ. राकेश जैन, विभागाध्यक्ष, प्लास्टिक एंड सर्जरी विभाग, एसएमएस अस्पताल-जिस दिन बच्चे जेके लोन में एडमिट हुए थे, उस दिन मेरे पास सूचना आते ही रेजिडेंट और ड्यूटी डॉक्टर्स वहां भेजे गए। बच्चों की हालत गंभीर थी और मैंने खुद उन्हें ब्लड व प्रोटीन लगवाने व आईसीयू में रखने के लिए कहा। इसके बाद कोई रेफरेंस हम तक नहीं पहुंचा। यदि कॉल भी आ जाता तो हम लगातार इसे देखते।
डॉ. मनीष शर्मा, इंचार्ज, इमरजेंसी, जेके लोन अस्पताल-जिस दिन बच्चे आए, मैंने प्लास्टिक सर्जरी के डॉक्टर्स को कॉल कर दिया था। लेकिन उसके बाद मैं लीव पर चला गया। पेशेंट दूसरे डॉक्टर की यूनिट में थे तो संभव है कि वहां से रेफरेंस भेजे गए हों। -डॉ। मनीष शर्मा, इंचार्ज, इमरजेंसी, जेके लोन अस्पताल
प्रिंस व मीनाक्षी की तरह न्यूरो, मेडिसिन, कार्डियो, आर्थो से लेकर ट्रॉमा सेंटर तक के मरीजों को रेफरेंस के लिए परेशान होना पड़ता है। रात के समय मरीजों के लिए रेफरेंस आते ही नहीं। अगले दिन तक मरीजों को इंतजार करना पड़ता है। अब जबकि मरीजों को इलाज कराने की प्राथमिकता होती है ऐसे में वे चाहकर भी कुछ नहीं कह पाते। झुलसे हुए बच्चों को बर्न वार्ड में शिफ्ट कराने के प्रयास क्यों नहीं हुए। बच्चों का इलाज अभी निजी अस्पताल में चल रहा है, जिसमें अब तक करीब 25 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं।
विप्र महासभा के प्रदेश अध्यक्ष सुनील उदईया ने बताया कि समाज को खबर लगने पर समाज के युवाओं ने ऑनलाइन अभियान चलाया और करीब पांच दिन में आठ से दस लाख रुपए अभी तक अकाउंट में जमा हो चुके हैं। विप्र महासभा प्रतिनिधिमंडल बुधवार यानी एक मार्च को हॉस्पिटल जाकर परिजनों से मिला और चिकित्सकों से बच्चों के स्वास्थ्य की जानकारी ली।
साथ ही 31 हजार रुपए की नकद सहायता दी। सुनील उदेईया ने सभी से अपील की है कि ज्यादा से ज्यादा लोग मदद को आगे आएं। साथ ही बाल संरक्षण आयोग में मिलकर मांग की है कि बिजली विभाग और प्रशासन की जिम्मेदारी तय कर मैरिज होम को बन्द किया जाए जिससे आने वाले समय में ऐसी अन्य घटनाओं से बचा जा सके और बच्चों को आर्थिक सहायता दी जाए।
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