जयपुर: (muslim saint named ahmed) भारत जैसे देश में गाय को माता कहा जाता है, ऐसे में अगर यहां कोई गाय की हत्या कर उसका मांस खाता है तो उसे कानून के सहारे सजा दी जाती है। लेकिन दूसरी तरफ देश के राजस्थान जैसे जिले में गाय को लेकर कई वीर पुरुषों ने अपने प्राणों की बलि दी है। ऐसा ही एक मामला नागौर जिले से आ रहा है। नागौर के एक छोटे से गांव अहमदपुरा में अहमद नाम के मुस्लिम संत का जन्म हुआ।
इन्होंने अपने पूरे जीवन काल में गो वध का विरोध किया। इनका जन्म लगभग 400 साल पहले हुआ था। ग्रामीणों ने बताया कि नागौर के टांकला गांव के पास स्थित अहमदपुरा को अहमदपीर गांव के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान के इतिहास में बहुत कम ऐसे मुस्लिम संत हुऐ है, जिन्होंने अभी तक गौ वध का विरोध किया है।
ग्रामीण मुन्नीराम के अनुसार यह ऐसे संत थे जिन्होंने अपने जीवनकाल में गो हत्या का विरोध किया और गायों की रक्षा करते हुए अपने प्राण त्याग दिए थे। जानकारी के अनुसार इनका सिर गांव की सीमा पर गिरा वही इनका धड़ अहमदपुरा गांव में बनी नाडी के किनारे पर आकर गिरा। इसके बाद उनकी समाधि वही बना दी गई। इस पीर की खास बात यह है कि यहां हिन्दु व मुस्लिम समाज दोनों के ही लोग पूजा करते है। राजस्थान के ऐसे बहुत कम संत है जिनकी पूजा हिन्दु व मुस्लिम समाज दोनों करते है। इनके समाधि पर हिन्दू व मुस्लिम दोनो समुदायों की अलग-अलग आस्था है।
ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार मान्यता है कि किसी बीमार गाय के इनके नाम की तांती या केसर (भभूती) लगा देते है तो गाय ठीक हो जाती है। इन्हें खेड़ा के धणी के नाम से भी जाना जाता है। ग्रामीणों का मानना है कि यह हर ग्रामीण वासियो की कष्ट रोग पीड़ा दूर करते है। हर साल भाद्रपद के शुक्ल तृतीया को जागरण का आयोजन किया जाता है।हर महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को लोग यहां पर परिक्रमा देने आते है। अहमदपीर का स्थान नागौर के टांकला गांव पास अहमदपूरा में इनकी समाधि स्थित है।