(जयपुर): राजस्थान में हुए सियासी ड्रामे के बाद पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दो दिवसीय गुजरात दौरे पर हैं, जहां वह एक जनसभा को भी संबोधित करेंगे, लेकिन राजस्थान कांग्रेस में हुए पॉलिटिकल ड्रामे के संकट की छाया अब गुजरात के चुनावों पर दिखने लगी है।
राजस्थान कांग्रेस में हुए पॉलिटिकल ड्रामे का असर गुजरात चुनावों पर भी दिख रहा है। कांग्रेस के जिन मंत्रियों-विधायकों की ड्यूटी गुजरात चुनावों में लगाई गयी थी, उन सब मंत्रियों-विधायकों का सारा ध्यान दिल्ली-जयपुर में केन्द्रित हो गया है। ऐसे में वे न तो अपना पूरा ध्यान और समय गुजरात में ही दे पा रहे और न ही पूरी क्षमता से काम कर पा रहे।
बीते 17 अक्टूबर को देश भर में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हुआ। इस चुनाव के परिणाम आने और दीपावली के बीतने के बाद ही गुजरात चुनाव में राजस्थान के कांग्रेस के मंत्रियों-विधायकों और नेताओं की भूमिका अच्छे ढंग से दिखाई देगी।
अपको बता दे कि इसी बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दो दिवसीय दौरे पर बीते 17 अक्टूबर यानि सोमवार को गुजरात पहुंचे। वहां वे एक सभा को भी संबोधित करेंगे।
गुजरात में राजस्थानी मूल के लोगों की संख्या लगभग एक करोड़ है और ऐसे में राजस्थान की कांग्रेस सरकार और उनकी पार्टी पूरी कोशिश कर रही है कि गुजरात में उनका बेहतरीन प्रदर्शन हो।
गुजरात की 26 लोकसभा सीटों पर अलग-अलग मंत्रियों-विधायकों की ड्यूटी लगाई गई। जिनमें से शिक्षा मंत्री बी. डी. कल्ला को आणंद, राजस्व मंत्री रामलाल जाट को पाटन, अल्पसंख्यक मामलात मंत्री सालेह मोहम्मद को कच्छ, खेल राज्य मंत्री अशोक चांदना को बनासकांठा, विधायक राजकुमार शर्मा को सूरत, आरटीडीसी के चैयरमेन धर्मेन्द्र राठौड़ को अहमदाबाद, सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना को मेहसाणा, उद्योग मंत्री शकुंतला रावत को सुरेन्द्रनगर, खान मंत्री प्रमोद जैन भाया को राजकोट, गृह राज्य मंत्री राजेन्द्र सिंह यादव को जामनगर, सुखराम विश्नोई को अमरेली, ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी को भावनगर, पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा को पंचमहाल, विधायक अमीन कागजी को अहमदाबाद, जल संसाधन मंत्री महेन्द्रजीत मालवीय को दाहोद, पूर्व मंत्री अर्जुन बामणिया को छोटा उदयपुर, प्रशासनिक सुधार राज्य मंत्री गोविंद राम मेघवाल को भरूच की जिम्मेदारी दी गयी है।
26 लोकसभा क्षेत्रों में कांग्रेस नेताओं को प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के हिसाब से चुनावी तैयारियां करवानी थीं। उन्हें अपनी जिम्मेदारी वाली लोकसभा सीट के तहत आने वाले प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में अब तक लगभग 5-6 बैठकें करनी थी, लेकिन अब तक राजस्थान के नेताओं की एक–दो बार ही बैठक हो सकी है।
कुछ नेता तो ऐसे हैं जो जुलाई महीने में ही जिम्मेदारी मिलने के बाद अब पहली बार गुजरात जाएंगे। प्रत्येक लोकसभा सीट के तहत 7-8 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं।
गुजरात की आबादी करीब साढ़े 6 करोड़ है। जिनमें से करीब एक करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनकी पारिवारिक जड़ें राजस्थान से हैं। इनमें भी अधिकांश लोग तो ऐसे हैं, जो विगत 40-50 वर्षों में ही राजस्थान से वहां जाकर बसे हैं।
अहमदाबाद, मेहसाणा, बनासकांठा, वड़ोदरा, आणंद, कच्छ, सुरेन्द्रनगर, राजकोट और सूरत में तो राजस्थान मूल के लोगों की आबादी करीब 25 से 50 प्रतिशत है। जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर संभाग और शेखावाटी क्षेत्र से वैश्य समुदाय और किसान समुदायों के लाखों परिवार गुजरात में बसे हैं।
मेडिकल और व्यापार के सिलसिले में एक लाख से अधिक राजस्थानी लोग रोजाना गुजरात आते-जाते हैं। अपको बता दे कि ऐसे में यह राजस्थानी समुदाय को लुभाने के लिए हर चुनाव में कांग्रेस और भाजपा राजस्थानी राजनेताओं को गुजरात में प्रचार, दौरे, सभा आदि के लिए भेजती हैं।
भाजपा ने तो गुजरात में साल 2017 में भी राजस्थान के सांसद व केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव को ही चुनाव प्रभारी बनाया था और इस बार भी भूपेन्द्र यादव को ही कमान सौंपी है। कांग्रेस ने पिछली बार अशोक गहलोत और इस बार भी राजस्थान से ही वरिष्ठ नेता डॉ. रघु शर्मा को ही प्रभारी बनाया है।
अब से पांच वर्ष पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को 2017 में गुजरात चुनावों का प्रभारी बनाया गया था। अशोक गहलोत ने वहां तब बहुत से गांव-शहरों में दौरे किए थे। अहमदाबाद की गलियों में तो गहलोत ने खुद ही घूम-घूम कर घर-घर जाकर लोगों को कांग्रेस के समर्थन में वोट देने के लिए अपील के पर्चे भी बांटे थे। उन चुनावों में कांग्रेस, भाजपा को 182 में से 99 सीटों पर रोक पाने में कामयाब भी हुई थी।
कांग्रेस को 77 सीटें मिलीं जो पिछले दो दशक में कांग्रेस का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन रहा। अशोक गहलोत ने तब एक बयान जारी कर इस प्रदर्शन को कांग्रेस की नैतिक जीत बताया था। उनका कहना था कि केन्द्र और गुजरात के साथ-साथ पड़ोसी राज्य यानि महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश व राजस्थान में भाजपा की सरकारें होते हुए भी भाजपा को 182 में से 100 सीटें भी ना मिल पाई।
कांग्रेस पार्टी ने अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को गुजरात चुनावों के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षक बनाया है। वे अगस्त महीने में गुजरात में दो-तीन स्थानों का दौरा कर चुके हैं। 17 अक्टूबर यानि सोमवार को वे एक बार फिर से गुजरात के लिए रवाना हो गए, जहां वे अहमदाबाद और बनासकांठा में भी सभा करेंगे। कांग्रेस को उम्मीद है कि गहलोत के नेतृत्व में पार्टी एक बार फिर से बेहतर प्रदर्शन करेगी।
राजस्थान की कांग्रेस सरकार के सभी मंत्रियों और प्रभावशाली नेताओं को गुजरात की किसी न किसी लोकसभा सीट का प्रभारी बनाया गया है। अभी तक दो बार उद्योग मंत्री शकुंतला रावत और आरटीडीसी के चैयरमेन धर्मेन्द्र राठ़ौड़ ने जरूर क्रमश: सुरेन्द्र नगर और अहमदाबाद में पार्टी मीटिंग की है। बाकी बचे अन्य नेताओं ने फिलहाल किसी भी तरह के कोई दौरे या सभा नहीं की है।
राजस्थान में कांग्रेस पार्टी और सरकार में जो राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना हुआ है, उससे गुजरात चुनावों में, कांग्रेस की तैयारियों पर भी ऊल्टा असर पड़ा। कांग्रेस के नेताओं, मंत्रियों, विधायकों और पदाधिकारियों का सारा ध्यान जयपुर और दिल्ली की तरफ हो गया।
क्योकि अब दीपावली आने वाली है, तो सभी मंत्री-विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्रों में व्यस्त रहेंगे। गुजरात के चुनावों की तिथियां अभी घोषित तो नहीं हुई, लेकिन यह माना जा रहा है कि यह नवंबर के अंतिम सप्ताह या दिसंबर के पहले सप्ताह में ही होंगी।
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