(जयपुर): कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट की पूरे राजस्थान में रैलियां करने की योजना कांग्रेस की राज्य इकाई में नई खींचतान का कारण बन सकती है. आपको बचा दे कि राज्य में विधानसभा चुनाव महज 10 माह ही दूर हैं. गौरतलब है कि सार्वजनिक सभाओं की श्रंखला के तहत पायलट अगले सप्ताह से किसानों और युवाओं को संबोधित करेंगे.
रिपोर्टों में कहा गया है कि राजस्थान में सफल भारत जोड़ो यात्रा के बावजूद नेतृत्व के अनसुलझे मुद्दे को लेकर दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर सचिन पायलट ने यह एकल अभियान शुरू करने का फैसला किया है. पायलट के करीबी सूत्रों ने “अल्टीमेटम” की खबरों का खंडन करते हुए कहा है कि यह कदम लोगों, विशेषकर युवाओं और किसानों के बीच भारत जोड़ो यात्रा के बाद उत्साह बनाए रखने और विधानसभा से पहले उनमें ऊर्जा संचारित करने के लिए उठाया गया है.
राजस्थान में इस वर्ष के अंत में चुनाव होने हैं. पर्यवेक्षक मानते हैं कि इस कदम के पीछे राजस्थान में अपनी प्रासंगिता बनाए रखने की सचिन पायलट का ‘सियासी केलकुलेशन’ भी है क्योंकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा जमीनी संगठन के काम में व्यस्त हैं और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, इस कार्यकाल का अपना आखिरी बजट पेश करने जा रहे हैं.
सूत्रों की माने तो इसके पीछे पायलट की मंशा, पार्टी में अपनी प्रासंगिता बनाए रखने और चुनावी वर्ष में खुद को सक्रिय दिखाने की है. पूर्व डिप्टी सीएम (सचिन पायलट) कथित तौर पर यह सुनिश्चित करने के लिए जाट बहुल क्षेत्रों में जाने की योजना बना रहे हैं कि 2003 या 2013 की तरह पार्टी का सफाया न हो.
पायलट के करीबी एक नेता ने कहा, “बीजेपी आक्रामक अंदाज में प्रचार कर रही है, हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते. ” सूत्रों ने बताया कि पायलट के इस अभियान को राहुल गांधी की सहमति हासिल है. उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) से अनुमति नहीं ली है.
सूत्रों ने पूछा, “इस स्तर पर,राज्य के नेता के रूप में क्या इसकी जरूरत है?”अपने पूर्व डिप्टी को “गद्दार ” कहने संबंधी अशोक गहलोत की तीखी टिप्पणी के बाद कांग्रेस फिलहाल सार्वजनिक विवाद से बच रही है.अपने युवा प्रतिद्वंद्वी को लेकर गहलोत ने कहा था, “एक गद्दार, मुख्यमंत्री नहीं हो सकता. हाईकमान सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बना सकता … एक आदमी जिसके पास 10 विधायक भी नहीं हैं, जिसने विद्रोह किया. जिसने उसने पार्टी को धोखा दिया, (वह) गद्दार है.”
गहलोत-पायलट के बीच टकराव तब शुरू हुआ था जब वर्ष 2018 में राजस्थान में कांग्रेस की जीत के बाद दोनों ने मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश की थी. यह टकराव वर्ष 2020 में चरम पर पहुंच गया था जब पायलट ने अपने समर्थक 20 विधायकों के साथ बगावती तेवर अपना लिए थे और हफ्तों तक दिल्ली में डेरा डाले रखा था. गांधी परिवार की ओर से पायलट को बदलाव का आश्वासन दिए जाने के बाद यह ‘ विद्रोह’ खत्म हुआ था.
हालांकि इसके बाद से अब तक यह मसला समाधान तक नहीं पहुंच सका है.कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस मुद्दे पर शुक्रवार को कहा कि नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ऐसा समाधान तलाश रहे हैं जिससे पार्टी संगठन को फायदा हो. उन्होंने कहा, “संगठन सर्वोच्च है. नेता आते हैं और चले जाते हैं. राहुल जी ने भी कहा है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों ही पार्टी के लिए ‘असेट’ यानी संपत्ति हैं.”