राजस्थान:(57 years ago in the Rajasthan Legislative Assembly, the then Governor suspended 12 MLAs from the House): राजस्थान विधानसभा में राज्यपाल कलराज मिश्र के अभिभाषण के दौरान 22 जनवरी यानी सोमवार को पूरे समय हंगामा होता रहा। इस हंगामे पर RLP के तीन विधायकों को पूरे एक दिन के लिए सस्पेंड कर दिया गया। संसदीय मामलों के एक्सपर्ट के मुताबिक राज्यपाल खुद भी अभिभाषण में बाधा पहुंचाने वाले विधायकों को सस्पेंड कर सकते हैं।
राज्यपाल मिश्र ने तो ऐसा नहीं किया लेकिन 57 साल पहले राजस्थान विधानसभा में तत्कालीन राज्यपाल ने 12 विधायकों को सदन से सस्पेंड कर दिया था। विधानसभा के पुराने रिकॉर्ड के अनुसार जाने तो 57 साल पहले 26 फरवरी 1966 को राज्यपाल ने अभिभाषण के दौरान हंगामा करने पर 12 विधायकों को सदन से सस्पेंड कर दिया था। उस वक्त भी कांग्रेस की ही सरकार थी और मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री थे।
संसदीय मामलों के जानकार और विधानसभा के रिटायर्ड चीफ रिसर्च ऑफिसर डॉ. कैलाश चंद सैनी का कहना है कि 26 फरवरी 1966 को तत्कालीन राज्यपाल डॉ. संपूर्णानंद बजट सत्र की शुरुआत में अभिभाषण पढ़ने विधानसभा पहुंचे थे और उस वक्त विधानसभा पुराने भवन टाउन हॉल में चलती थी। तब राज्यपाल का अभिभाषण शुरू होते ही विपक्षी विधायक ने कुछ अध्यादेशों पर आपत्ति जताते हुए राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान हंगामा किया था।
राज्यपाल ने हंगामा करने वाले विधायकों को कई बार टोका, लेकिन वह शांत नहीं हुए। इस पर राज्यपाल संपूर्णानंद ने 12 विपक्षी विधायकों को सदन से सस्पेंड करते हुए मार्शल से बाहर निकलवा दिया। आपको बता दे कि तब भी राज्यपाल अपना पूरा अभिभाषण नहीं पढ़ सके थे, लेकिन इसे पढ़ा हुआ मान लिया गया था।
रामानंद अग्रवाल मानिकचंद सुराणा, उमरावसिंह ढाबरिया, रामकिशन, योगेन्द्रनाथ हांडा, मुरलीधर व्यास, नत्थीसिंह (भरतपुर), विट्ठल भाई, मोहनलाल सारस्वत, हरिशंकर, केदारनाथ शर्मा और दयाराम को सदन से बाहर निकाला था। बता दे कि ये सभी गैर कांग्रेसी विधायक थे। इनमें ज्यादातर जनसंघ में शामिल थे।
इसके बाद विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव खारिज होने के बाद उन सभी 12 विधायकों को राज्यपाल के सस्पेंड करने वाले एक्शन के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन विधायक योगेंद्र हांडा बनाम राज्य के इस केस में हाईकोर्ट ने भी राहत नहीं दी थी। इस केस में 12 विधायकों ने तर्क दिया था कि राज्यपाल को विधायकों के सदन से निष्कासित करने, निकालने का कोई अधिकार नहीं था। साथ ही पूरे सत्र के लिए सस्पेंशन को भी चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट ने योगेंद्र हांडा बनाम राज्य के केस में 1967 में फैसला सुनाते हुए कहा था- संविधान के आर्टिकल 212 में विधानसभा को विधायकों के आचरण पर कार्रवाई का अधिकार है। मामला विधानसभा के अंदरूनी नियमन का होने और सदन की कमेटी के पास विचाराधीन होने के आधार पर कोई कमेंट नहीं किया जा सकता।
राज्यपाल के इन 12 विधायकों को सदन से निकालने के मामले में सदन की विशेषाधिकार कमेटी ने 22 सितंबर,1966 को रिपोर्ट दी। इसमें राज्यपाल के पक्ष में रिपोर्ट आई। विशेषाधिकार हनन की बात को सिरे से खारिज कर दिया गया। विशेषाधिकार कमेटी ने रिपोर्ट में लिखा था- कि राज्यपाल संविधान के आर्टिकल 176 में किए गए प्रावधानों के तहत अभिभाषण देने आए थे।
यह संवैधानिक ड्यूटी थी। इस ड्यूटी में बाधा डालने वाले विधायकों को बाहर निकालने का उनके पास संवैधानिक पावर था। विशेषाधिकार कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर 24 सितंबर 1966 को विधानसभा स्पीकर ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया।
आपको बता दे कि विधानसभा के बजट सत्र की शुरुआत राज्यपाल के अभिभाषण से होती है, राज्यपाल विधानसभा आकर अभिभाषण देते हैं। संसदीय मामलों के जानकार डॉ. कैलाश चंद्र सैनी के अनुसार 23 फरवरी 1961 को एक बार ऐसा भी हुआ जब राज्यपाल ने विधानसभा की जगह राजभवन में ही अभिभाषण करवाया।
राज्यपाल ने बीमार होने के कारण केवल एक लाइन अभिभाषण पढ़ा और आगे का तत्कालीन स्पीकर ने पढ़ा। सभी विधायक राज्यपाल के अभिभाषण के लिए विधानसभा की जगह राजभवन गए थे। राज्यपाल का राजभवन में अभिभाषण की जगह चुनने और स्पीकर के अभिभाषण पढ़ने पर विवाद भी हुआ था। विधानसभा में बहस के बाद अध्यक्ष ने यह फैसला दिया था कि राज्यपाल एक लाइन भी पढ़ दे तो अभिभाषण पढ़ा हुआ ही माना जाएगा।