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जानिये महाशिवरात्रि से जूड़ी अनसूनी कहानी और पूजन के ये विधि-विधान जिससे कटेंगे सारे कष्ट

• LAST UPDATED : February 16, 2023

(इंडिया न्यूज), जयपुर: (Unheard story related to Mahashivaratri) महाशिवरात्रि के पावन मौके पर श्रद्धालु शिव मंदिरों या फिर अपने घरो मे रुद्राभिषेक करते हैं। और बहुत से लोग महाशिवरात्रि के दिेन व्रत करते हैं साथ ही रात्रि जागरण भी करते हैं।

माना जाता है कि इसी दिन शिव ने तीनों लोकों की सुंदरी तथा शीलावती गौरी से विवाह किया था, इसलिए सनातन धर्म में महाशिवरात्रि को एक बड़े महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले व्रतधारक को मोक्ष की प्राप्ति होती है और भगवान शिव अपने भक्तों का मंगल करते हैं और संपत्ति प्रदान करते हैं

महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को होता है

शास्त्रों मे कहा गया है कि महाशिवरात्रि की रात ही भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसके बाद से ही हर साल फाल्गुन माह में महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। इस साल महाशिवरात्रि 18 फरवरी शनिवार को पड़ रही है। महाशिवरात्रि के दिन भक्त जप, तप और व्रत करते हैं तथा महाशिवरात्रि की कहानी सुनते हैं।

महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को होता है, कुछ लोग चतुर्दशी के दिन भी इस व्रत को करते हैं ऐसा कहा जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान शंकर का रूद्र के रूप में अवतरण हुआ था प्रलय के समय इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त किये थे इसलिए इसे महाशिवरात्रि या कालरात्रि भी कहा जाता है।

महाशिवरात्रि के पूजन का क्या है विधि-विधान

  1. शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक करें।
  2. महाशिवरात्रि के प्रथम पहर में संकल्प करके दूध से स्नान के बाद ॐ हीं ईशानाय नम: का जाप करें।
  3. द्वितीय प्रहर में दधि स्नान करके ॐ हीं अघोराय नम: का जाप करें।
  4. तृतीय पहर में धृत स्नान एवं मंत्र ॐ हीं वामदेवाय नम: का जाप करें।
  5. फिर चतुर्थ पहर में मधु स्नान एवं ॐ हीं सद्योजाताय नमः मंत्र का जाप करें।

पुरे परिवार के सुख-सौभाग्य हेतु इस मंत्र का जाप अवश्य करे

मंत्र – ॐ साम्ब सदा शिवाय नम:।

संपूर्ण महामृत्युंजय मंत्र

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे

सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्

मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्

ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ

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