Jaipur: राजस्थान में कन्याओं, युवतियों और सुहागिनों का प्रसिद्ध त्योहार गणगौर पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को लेकर सभी में अच्छा खासा उत्साह रहता है। वहीं गणगौर पूजन के पीछे अलग-अलग स्थानों पर कई रीति रिवाज भी है। ऐसा ही अनूठा रिवाज जयपुर में गणगौर पूजन में देखने को मिलता है। बता दें कि गणगौर माता की (मां पार्वती) ईसरजी (भगवान शिवजी) के बिना अकेले ही पूजा की जाती है। इसके पीछे क्या कहानी है। आज हम आपको बताते हैं। वैसे तो गणगौर (माता पार्वती) की पूजा में ईसरजी (शिवजी) के साथ संयुक्त रूप से साथ होती है। लेकिन जयपुर एक ऐसा अनूठा स्थान है। जहां पिछले 263 सालों से गणगौर माता अपने पीहर जयपुर में अकेली पूजी की जा रही है। वहीं इस दौरान गणगौर की सवारी भी जयपुर में अकेले ही निकाली जाती है।
इसके पीछे का इतिहास है बेहद खास। रूपनगढ़ के महाराजा सावत सिंह के समय वहां के महंत ने किशनगढ़ में सवारी निकालने के लिए ईसर-गणगौर नहीं दिए। इस पर किशनगढ़ के महाराजा बहादुर सिंह जयपुर से ईसरजी को अकेले लूट कर ले आए। तब से जयपुर में अकेले ही गणगौर माता की पूजा का रिवाज है। जबकि जयपुर के अलावा अन्य रियासतों में गणगौर के साथ ईसरजी की सवारी निकलती हैं। बाद में किशनगढ़ में भी ईसरजी के साथ गणगौर की स्थापना की गई थी। जिसके बाद से वहां भी दोनों की सवारी साथ निकाली जाती है।
जयपुर में गणगौर पूजा को लेकर एक और अलग रिवाज है। आमेर-जयपुर राजघराना की पूर्व माता पद्मिनी देवी ने बताया कि सिटी पैलेस में जनानी ड्योढी से गणगौर जी की शाही सवारी लवाजमे के साथ रवाना होती है। इस दौरान माताजी पौन्ड्रिक की छतरी उद्यान में पहुँचती है। इसके बाद माता को घेवर का भोग लगाकर जल पिलाया जाता है। फिर माताजी की सवारी सिटी पैलेस लौट जाती हैं।
यह भी पढ़े: Anupama Latest Update: अनुज को जाने से रोकेगी अनुपमा, बरखा हड़पेगी अनुज का बिजनेस