India News (इंडिया न्यूज़)ker sangri,जयपुर: राजस्थान में दूर-दूर से यहां लोग केवल घुमने ही नही बल्कि यहां की संस्कृति और परंपरा से रूबरू होने भी आते है। बता दें कि यहां की सिर्फ संस्कृति और परंपरा ही लोगों को अपनी ओर अकर्षित नही करती बल्कि यहां का स्वादिष्ट खाना भी लोगो को अपनी ओर खिचता है। अगर कोई यहां घुमने आया है और लजीज खाने का स्वाद नही चखा तो, क्या ही खाया। लेकिन खाने का जायका भी उन्हें सालों तक याद रहता है।
आपको बता दें कि राजस्थानी खाने में जब तक केर-सांगरी की सब्जी न हो, तो समझिए आपने एक बेहतरीन राजस्थानी जायका छोड़ दिया। हालांकि मौसम में परिवर्तन के चलते आपका यह जायका ‘महंगा’ हो गया है। क्योकि जलवायु परिवर्तन के कारण इस मौसम में बेमौसम बारिश के चलते खेजड़ी के पेड़ों में कीड़े लग गए हैं और हजार-पंद्रह सौ रुपये प्रति किलो तक बिकने वाली केर-सांगरी के भाव अब 3000 रुपये किलो तक पहुंच गए हैं। छोटे से छोटे होटलों और ढाबों में मिलने वाली केर-सांगरी अब थाली से दूर होती नजर आ रही है।
आपको बता दें कि खेजड़ी को राजस्थान की संजीवनी माना जाता है। मरू प्रदेश में जहां पेड़-पौधे नहीं के बराबर होते हैं, वहां खेजड़ी न सिर्फ छाया देती है, बल्कि इस पर लगने वाली सांगरी सदियों से यहां के लोगों के खानपान का खास हिस्सा रही है।
बता दें कि सांगरी पौष्टिक है और केर के साथ मिलाकर बनने वाली केर-सांगरी की सब्जी राजस्थानी पकवान का अहम हिस्सा है। इस बार पश्चिमी राजस्थान में मार्च, अप्रैल और मई के महीनों में तीन गुना ज्यादा बारिश होने के कारण खेजड़ी में कीड़े लग रहे हैं और हवा में नमी के कारण और ज्यादा कीड़े पनपने लगे हैं।
अरीज रिसर्च जोन जोधपुर के डायरेक्टर एम आर बलोच के मुताबिक, इस बार सांगरी का उत्पादन 60-70 प्रतिशत तक कम हो गया है। कारण जलवायु परिवर्तन है। जहां गर्मी पड़नी थी, वहां पर बारिश के कारण ठंडक हो गई है। नमी के कारण खेजड़ी के प्राकृतिक दुश्मनों फंगस और कीच के पनपने के लिए अच्छी परिस्थितियां पैदा हो गईं, यह गर्मी में पहले मर जाते थे। हालांकि नमी के कारण अधिक पनप गए।
यह केवल इंसानो के लिए ही नही बल्कि जामनरो के लिए भी उतनी ही लाभदायक है जितनी की इंसानो के लिए होती है। आपको बता दें कि सूखे और गर्मी के मौसम में खेजड़ी पर सांगरी लगती है और उसकी पत्तियों पर बकरियां गुजारा करती हैं।
खेजड़ी को रेगिस्तान में जीवनदान देने वाले वृक्ष के रूप में पूजा भी जाता है। हालांकि इस बार जलवायु परिवर्तन का असर खेजड़ी और उससे होने वाली सांगरी पर दिख रहा है। गैन के एक किसान ने बताया कि वो सांगरी और केर बेचकर अच्छा पैसा कमा लेते थे। लेकिन इस बार पेड़ पर फल ही नहीं आ रहे हैं।
राजस्थानी में सभी खानो की स्वाद अलग और स्वादिष्ट होता है लेकिन राजस्थानी थाली में केर-सांगरी इकलौती हरी सब्जी हुआ करती थी। इस बार वो गायब है। एक रेस्टोरेंट मालिक आनंद भाटी ने कहा कि केर-सांगरी की ज्यादा पैदावार नहीं हो रही है। उन्होंने कहा कि 160 रुपये की थाली में पहले केर-सांगरी की सब्जी परोसी जाती थी, लेकिन महंगी होने के कारण उसे हमने बंद कर दिया है।
बता दें कि जोधपुर के बाजारों में भी केर-सांगरी के भाव दोगुने हो चुके हैं। जलवायु परिवर्तन सिर्फ पर्यावरण पर ही असर नहीं डालेगा, लेकिन लोगों के पारंपरिक खानपान को भी बदल दिया है।
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