Wednesday, July 3, 2024
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Jaipur: भगवान श्रीकृष्ण का अनोखा मंदिर जहां राधा या मीरा संग नही बल्कि मीरा बाई संग विराजे है कान्हा

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India News(इंडिया न्यूज), Jaipur News: भगवान श्रीकृष्ण के देश सहित विदेशों में भी कई भक्त हैं और उनकी आराधना के साथ साथ गीता में दिये ज्ञान का अनुसरण करते हैं। कृष्ण भगवान के भारत में कई प्रसिद्ध व प्राचीन मंदिर भी हैं। जहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है। कई आस्था का केंद्र हैं। जिनमें से जयपुर आमेर का सबसे अधिक प्रसिद्ध मंदिर है। लेकिन भारत में कृष्ण मंदिर में उनके साथ राधा ही होती हैं। परंतु हम आपको जन्माष्टमी पर एक ऐसे अद्भुत मंदिर में दर्शन करवा रहे हैं जहां श्रीकृष्ण के साथ राधा नहीं बल्कि मीरा की पूजा की जाती है।

यहां श्रीकृष्ण मीरा के संग विराजे हुए है

आमेर के जगत शिरोमणि मंदिर में मीरा के इसी गिरधर के जन्माष्टमी पर जन्म दर्शन होंगे। जी हां आपने अब तक मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा और रुक्मणी के साथ ही देखा होगा। जयपुर में ऐसा मंदिर भी है जहां भगवान श्रीकृष्ण उनकी भक्ति में दीवानी हुई मीरा बाई के संग विराजे हुए हैं। आमेर में सागर रोड पर स्थित जगत शिरोमणि के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर 478 साल पुराना है। इस मंदिर में कृष्ण के साथ मीरा की प्रतिमा स्थापित है। बताया जाता है कि मेवाड़ की मीरा की यह प्रतिमा चित्तौड़ से महाराजा मानसिंह (प्रथम) हल्दीघाटी युद्ध (जून 1576) के बाद आमेर ले आए थे।

रानी कनकावती ने पुत्र की याद में बनवाया यह मंदिर

मंदिर पुजारी राजेंद्र प्रसाद शर्मा ने धार्मिक दस्तावेज के आधार पर यह तथ्य बताया कि मानसिंह की रानी कनकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की याद में जगत शिरोमणि मंदिर बनवाया। पुरातत्व विभाग के अनुसार मन्दिर 1599 ईस्वी से 1608 ईस्वी के दक्षिण भारतीय शैली में यह मंदिर बनवाया गया। मीराबाई मेवाड़ में 600 वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण की जिस मूर्ति को पूजा करती थी इस मंदिर में श्रीकृष्ण की वही प्रतिमा है। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मानसिंह प्रथम इस प्रतिमा को चित्तौड़गढ़ से लेकर आमेर आए थे। आमेर में जिस मंदिर में प्रतिमा की स्थापना की गई वह मंदिर विष्णु भगवान का जगत शिरोमणि मंदिर है। मंदिर में श्रीकृष्ण की प्रतिमा के साथ भक्त के रूप में मीराबाई की प्रतिमा भी रखी गई।

मंदिर के सामने हाथ जोड़े खड़ी गरुड़ की मूर्ति

15 फीट ऊंचे चबूतरे पर संगमरमर से निर्मित मंदिर में पीले पत्थर, सफेद और काले संगमरमर से बने मंदिर में पौराणिक कथाओं के आधार पर गढ़ा शिल्प दर्शनीय है। इस मन्दिर में ऊंचाई पर हाथी, घोड़े और पुराणों के दृश्यों का कलात्मक चित्रांकन है। इस मंदिर का मंडप दो मंजिल का है। यह मंदिर हिंदु-वैष्णव संप्रदाय से संबंधित है। मंदिर के तोरण, द्वार-शाखाओं, स्तंभों आदि पर बारीक कारीगरी है। मुख्य उपासना गृह में राधा, गिरिधर, गोपाल और विष्णु की मूर्तियां हैं। एक विशाल कक्ष उत्कृष्ट रूप से निर्मित कला और शिल्प की शोभा को प्रदर्शित करता है। मंदिर के सामने हाथ जोड़े खड़ी गरुड़ की मूर्ति इस मंदिर की शोभा और बढ़ा देती है।

मंदिर के द्वारा पुत्र की दिलाते है याद

बताया जाता है कि 1599 ईस्वी से 1608 ईस्वी में निर्माण कार्य पूरा हुआ जिस पर उस समय 11.77 लाख रुपये.खर्च हुए थे।मंदिर के निर्माण में करीब 9 लाख 72 हजार रूपये खर्च हुए तो वहीं गरूड की छतरी निर्माण में 1.25 लाख रूपये और तोरण गेट में करीब 80 हजार रूपये खर्च पर कुल 11.77 लाख रूपये खर्च होना बताया जाता है।बताया जाता है कि रानी कनकावती की इच्छा थी कि इस मंदिर के द्वारा उनके पुत्र जगतसिंह को सदियों तक याद रखा जाए, मंदिर वैश्विक पहचान बनाए। इसलिए उन्होंने इसका नाम जगत शिरोमणि रखा, यानी भगवान विष्णु के मस्तक का गहना। यह मंदिर राजपूत स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण है।

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