आखिर क्या वजह रही जो राजस्थान के मुख्यमंत्री की गद्दी सचिन पायलट की जगह अशोक गहलोत को मिल गई

Ashok Gehlot v/s Sachin Pilot: गहलोत और पायलट के बीच की ये जंग कोई नई नहीं। पायलट का राजस्थान में अनशन और फिर दिल्ली आने के साथ ही लोगों के जहन में कई सवालों को लेकर आया है। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक पायलट और गहलोत के बीच यदि जल्द सुलह कराने में प्रियंका वाड्रा आगे आ सकती हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पायलट प्रियंका वाड्रा के संपर्क में हैं।

बता दें कि इससे पहले भी प्रियंका वाड्रा दोनों के बीच कई बार सुलह करा चुकी हैं। इस बार पायलट ने भले ही मौन अनशन धारण किया हो लेकिन पायलट की इस चुप्पी ने सियासी गलियारों में शोर मचा दिया है। पायलट के समर्थकों का कहना है कि कांग्रेस में दूसरे युवा नेताओं को देखा जाए तो, पायलट में सीएम बनने की खूबियां सबसे ज्यादा है। इसके बावजूद पार्टी ने उन्हें पीसीसी अध्यक्ष के रूप में राजस्थान भेजा।

2004 में सचिन पायलट दौसा लोकसभा सीट से चुनाव जीते

लगभग 20 साल पहले 10 फरवरी 2002 को पिता राजेश पायलट के जन्मदिन पर सचिन पायलट ने कांग्रेस ज्वाइन की थी। कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद सबसे पहली रैली रही ‘एक किसान रैली’ जिसमें सचिन पायलट कांग्रेस का हिस्सा बने थे। इसी दौरान अशोक गहलोत भी मंच पर मौजूद थे। इसके दो साल बाद 2004 में सचिन पायलट दौसा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत गए। उस समय पायलट की उम्र महज 26 साल थी। उस समय तक गहलोत की नजरे सचिन पायलट पर नही पड़ी थी।

गहलोत ने पायलट को चुनाव लड़ने का सुझाव दिया

साल 2008 में राजस्थान के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर गहलोत सरकार बनी। तो वही, साल 2009 में सचिन पायलट ने अजमेर से लोकसभा चुनाव लड़ा और मनमोहन सरकार में पायलट को मिनिस्टर ऑफ स्टेट बनाया गया और यही वो समय था जब गहलोत और पायलट के बीच मतभेद और मनमुटाव शुरू हो गया।

इसके बावजूद भी साल 2013 में अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को अजमेर सीट से चुनाव लड़ने का सुझाव दिया था। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 163 सीट मिली तो वही, कांग्रेस के खाते में महज 21 सीटें ही आई। बता दें कि कांग्रेस का राजस्थान में यह सबसे खराब प्रदर्शन रहा था। यह वो समय था जब राजस्थान की सत्ता पूरी तरीके से भाजपा के हाथ में जा चुकी थी।

2014 में पायलट खुद भी चुनाव हार चुके थे

साल 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी आलाकमान ने सचिन पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बना दिया। बता दें कि उस समय पायलट की उम्र 36 साल थी। लेकिन गहलोत खेमे को ये बात पसंद नहीं आई और यहीं से पार्टी में मनमुटाव की शुरुआत हुई। साल 2014 के राजस्थान लोकसभा चुनावों में कांग्रेस एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत पाई। पायलट खुद भी चुनाव हार चुके थे।

इस हार के बाद भी पार्टी आलाकमान ने पायलट पर भरोसा जताया और गहलोत को विधानसभा चुनावों से पहले गुजरात का प्रभारी बना दिया। पार्टी ने इस तरह एक तीर से दो निशाने साधे। पायलट की अगुआई में 2018 का राजस्थान विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने बहुमत के साथ जीत लिया। लेकिन पार्टी आलाकमान ने सत्ता की गद्दी अशोक गहलोत को दे दी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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Nisha Parcha

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