(जयपुर): महंगा कोयला खरीद के नाम पर एक बार फिर बिजली उपभोक्ताओं पर फ्यूल सरचार्ज का बोझ डाल दिया गया है। उपभोक्ता को नवम्बर और दिसम्बर के महीनें में जारी होने वाले बिल में 21 पैसे प्रति यूनिट अतिरिक्त राशि देनी होगी। डिस्कॉम्स ने गुरुवार को इस संबंध में आदेश जारी कर दिए। इसके जरिए करीब 375 करोड़ रुपए की वसूली होगी।
विद्युत वितरण कंपनियां इसमें से 200 करोड़ रुपए सामान्य उपभोक्ताओं से बिल के जरिए वसूलेगी। बाकी 175 करोड़ रुपए भार सरकार उठाएगी। यह राशि सरकार से सीधे वितरण कंपनियों के खाते में आएगी। इसमें कृषि व पचास यूनिट तक फ्री बिजली वाले उपभोक्ता शामिल हैं, जिन्हें सरकार सब्सिडी दे रही है।
बिजली वितरण कंपनियों का तर्क है कि बिजली उत्पादन के दौरान जो ईंधन की खरीद दर और अनुबंध में जो दर निर्धारित है, उनकी अंतर राशि ही फ्यूल सरचार्ज है। यह निर्धारण कोयला, डीजल व परिवहन खर्च के आधार पर होता है। राज्य विद्युत विनियामक आयोग से स्वीकृत फॉर्मूले के आधार पर सरचार्ज निर्धारित है। सवाल यह है कि ईमानदार बिजली उपभोक्ताओं पर भी इसका बोझ क्यों पड रहा हॉ?
फ्यूल सरचार्ज तय करने की प्रक्रिया भले ही निर्धारित है, यह देखना होगा कि किस कारण से इसकी नौबत आ रही है। कोयला खरीद दर ज्यादा है या अन्य कारण से सरचार्ज लगा रहा है। बिजलीघरों में कोयले की गुणवत्ता की जांच के लिए थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन होना चाहिए।
बिजली उत्पादन महंगा होने के पीछे दूसरे कारण भी हो सकते हैं। बिजलीघरों के लिए कोयला अब भी वाशिंग करके ही मंगवाया जा रहा है। अनुबंधित कंपनी को मोटी राशि दी जा रही है, जिससे उत्पादन 40 पैसे यूनिट महंगा पड़ रहा है।
केंद्र ने मई 2020 में इसके विकल्प के तौर पर अपनाने के लिए अनुमति दी थी। विदेशों से कोयला खरीद अनिवार्यता ने कोढ़ में खाज का काम किया है। घरेलू कोयले के साथ विदेशी कोयले के 10% सम्मिश्रण से 50 पैसे प्रति यूनिट अतिरिक्त लागत बढ़ने की आशंका है, जो उपभोक्ताओं के लिए झटका होगा। केंद्र-राज्य सरकार नीति और प्रावधान तो तय करती है लेकिन इसकी मॉनिटरिंग की पुख्ता व्यवस्था से ही जनता को कुछ राहत मिल सकती है।
इस वर्ष जुलाई से सितम्बर तक फ्यूल खरीद दर में आए अंतर के आधार पर सरचार्ज की गणना की गई है। बिजली उत्पादन के लिए महंगे दाम पर कोयला खरीदने के कारण लगातार यह हालात बन रहे हैं।
कुछ माह पहले ही विदेश से 5.79 लाख मीट्रिक टन कोयला आयात किया गया, जिसकी कुल लागत करीब 1042 करोड़ रुपए आंकी गई। राज्य सरकार ने इसके लिए केन्द्र सरकार के निर्देश का हवाला दिया है