जयपुर:(Sarpanch can take his village towards development if he wants): हमारे भारत के संविधान में पंचायती राज व्यवस्था अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। पंचायती राज व्यवस्था , ग्रामीण भारत की स्थानीय स्वशासन की प्रणाली मानी जाती है। जिस तरह से नगरपालिकाओं तथा उप-नगरपालिकाओं के द्वारा शहरी क्षेत्रों का स्वशासन चलता है, उसी प्रकार पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों का स्वशासन चलता है। चूंकि भारत की 68।84 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों के स्वशासन का प्रभावशाली होना अति आवश्यक है। इसी आवश्यकता को पूरा करने हेतु ‘सरपंच’ की भूमिका जरूरी है।
सरपंच भारत में स्थानीय स्वशासन के लिए गांव स्तर पर विधिक संस्था ‘ग्राम पंचायत’ का प्रधान होता है। सरपंच चुने गए पंचों की मदद से ग्राम पंचायत के महत्वपूर्ण विषयों पर फैसला लेता है। एक सरपंच का वर्चस्व किसी गांव के उत्थान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। सरपंच चाहे तो अपने गांव को विकास की ओर ले जा सकता है एवं देश की उन्नति में अपना सहयोग दे सकता है। आज हम ऐसी ही एक सरपंच के बारे में बात करने वाले हैं जिन्होंने अपनी निजी संपत्ति से समाज कल्याण किया एवं एक ‘सरपंच’ की भूमिका को नये सिरे से परिभाषित किया।
‘हॉकी वाली सरपंच’ के नाम से मशहूर नीरू यादव, ग्राम पंचायत लाम्बी अहिर तहसील बुहाना जिला झुन्झुनू की सरपंच है। आपको बता दे कि सरपंच नीरू यादव ने ग्रामीण विकास के लिए नए-नए प्रयासों का सहारा लिया। सरपंच ने सर्वप्रथम गांव में खेलों का महत्व समझाया एवं युवाओं को खेलों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। खास बात यह है कि सरपंच ने घर-घर जाकर बालिकाओं को हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अपने दो साल के मानदेय से गांव की बालिकाओं को हॉकी किट वितरित किए एवं ग्राम पंचायत की बच्चियों की हॉकी टीम तैयार की।
बच्चियों को हॉकी का प्रशिक्षण दिलवाने हेतु कोच भी रखा और रोजाना स्वयं के साधन से बच्चियों को खेल मैदान में भिजवाया। स्वयं ने भी बालिकाओं के साथ पचेरी कलां के खेल मैदान में जाकर तैयारी करवाई एवं अन्य सहयोग देने का भी भरोसा दिलाया। इसी के परिणाम स्वरूप लांबी अहीर पंचायत की बालिका हॉकी टीम ब्लॉक स्तर पर विजेता रही एवं जिला स्तर पर भाग लेने में समर्थ हुई। इसी कार्य के फलस्वरूप उनका नाम पड़ा ‘हॉकी वाली सरपंच’। इसके अलावा भी ‘हॉकी वाली सरपंच’ ने ग्रामीण विकास हेतु भारत की पहली महिला सरपंच है जो ‘सच्ची सहेली महिला एग्रो’ के नाम से FPO (किसान उत्पादन संगठन) का संचालन करती है।
सरपंच ने SIIRD (सोसाइटी ऑफ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट) की सहायता से नाबार्ड के साथ मिल कर ‘किसान उत्पादन संगठन’ स्थापित किया। बता दे कि यादव ने इस कंपनी के निदेशक मंडल के रूप में जिम्मेदारी संभाली। इसके द्वारा किसानों को उचित दर पर खाद-बीज और अन्य कृषि से संबंधित चीजे मिलेंगी। संदर्भ में कहें तो इसके माध्यम से किसानों को सीधा फायदा मिलेगा। नीरू यादव कहती हैं, कि “हम अपने किसानों के लिए विभिन्न चैनलों की बाजार पहुंच, पैमाने की अर्थव्यवस्था, लेनदेन लागत में कमी, बिचौलियों में कमी लाने का लक्ष्य रखते हैं। हम अपने किसानों की अधिक आय, सशक्तिकरण और क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
कंपनी के लगभग 50 किसानों ने एफपीओ की स्थापना के सिर्फ 2 महीने के भीतर लाभ मिलना शुरू हो गया है।” इन सभी प्रेरणादाई कार्यों के अलावा भी नीरू यादव ने प्रधानमंत्री की ‘कौशल विकास योजना’ का महत्व समझा एवं गांव को विकसित करने में इस योजना का लाभ उठाया। उन्होंने गांव भर के लोगों को अपने भीतर कौशल विकसित करने के लिए जागरूक किया। फलस्वरुप गरीब बच्चे-बच्चियां जिनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं होता था, उन्होंने योजना के अंतर्गत नामांकन करवाकर अपने भीतर कौशल विकसित किया, नौकरी हासिल की एवं स्वयं को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनाया। किसी देश के गांव का विकासशील होना या ना होना ही यह तय करता है कि वह देश कितना विकसित है!
भारत जैसे देश में जहां हर तीसरा व्यक्ति गांव से संबंध रखता है, गांवों का विकसित होना वांछनीय है। इसलिए गांवों को विकसित करने में सरपंचों की जो भूमिका है, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। नीरू यादव जैसे सरपंचों की ही बदौलत है कि हमारे देश के गांव में विकास की लहर दौड़ रही है। हमारे देश के गांवों को नीरू यादव जैसे ही सरपंचों की जरूरत है जिससे हमारे गांव प्रगतिशील एवं सदैव उन्नति की ओर उन्मुख रहे और हमारे देश के गांव के लोगो के सापने भी साकार हो सके।