इंडिया न्यूज़, कल्पना वशिष्ठ : देश की राजनीति में भंवर जितेंद्र सिंह बड़ा नाम हैं। वे राजपूत नेता हैं लेकिन 36 बिरादरी के चहेते हैं। राजस्थान में ज्यादातर नेता जातिगत राजनीति के बल पर या परिवार की परम्परागत राजनीति के बल पर खड़े हैं, लेकिन भंवर जितेंद्र सिंह ऐसे नेता हैं, जो जातिगत राजनीति नहीं करते, सभी जातियों को साथ लेकर चलते हैं।
अलवर ऐसा जिला है, जहां दशकों से जातिगत राजनीति चल रही है। यहां कहीं अहीरवाल की राजनीति प्रभावी है, तो कहीं गुर्जर राजनीति। एक बेल्ट मीणा समाज से प्रभावित है। ज्यादा दबदबा वोटो की लिहाज से भी अहीर राजनीति का है। बड़ी बात ये है कि भंवर जितेंद्र सिंह सीधे टकरा रहे हैं इस जातिगत राजनीति से। या ये कहें इस जाति के वोट भंवर जितेंद्र सिंह को कितने मिलते हैं ये सभी जानते हैं।
चुनाव में हार-जीत अलग बात है, इंदिरा गाँधी, बहुगुणा, राहुल गाँधी, देवीलाल जैसे अनेक बड़े नेता चुनाव हारे हैं लेकिन उनका कद कम नहीं हुआ। भंवर जितेंद्र सिंह भी वो उदारवादी नेता हैं जिनका कद किसी भी पद से बड़ा है। पैराशुटी नहीं हैं, संघर्ष कर आगे आये। अपनी मां युवरानी महेंद्र कुमारी की तरह जनहित में कोई समझौता नहीं करते। देश के नामी राजघराने से हैं तो खून में गद्दारी नहीं।
संघर्ष के साथी आज भी साथ हैं, अगर कोई विरोध करे तो उसकी आवाज जनता खुद नक्कार खाने में तुंती की तरह दब जाती है। या ये कहें अलवर जिले में ऐसा बड़े कद का तैयार होने में समय लगेगा जो भंवर जितेंद्र सिंह का विरोध करने में सक्षम हो।
वर्तमान में उनकी विकासशील सोच अलवर से दिल्ली तक मानी जा रही है। हाल ही राहुल गाँधी की यात्रा को लेकर वे कांग्रेस के उन चंद थिंक टैंकों में शामिल थे, जिन्होंने सम्पूर्ण तैयारी की। वे गाँधी परिवार के प्रति समर्पित हैं। अलवर में विकास किसी से छिपा नहीं है। वे पद, पैसा पावर के लिए नहीं सेवा करने की नियत से राजनीति में आये, वरना पद पैसा पावर तो इनको देश के प्रतिष्ठित राजघराने में जन्म से ही मिली है।
बड़ी मेहनत से देश की राजनीति में उसी तरह अलवर का नाम करने में सफल जैसे पहले राजघराने के नाम से देश में अलवर की पहचान रही है। आज वे देश की कांग्रेस में टॉप टेन नेताओं में शुमार हैं। गाँधी परिवार व कांग्रेस के साथ अलवर की जनता को भी उनसे बड़ी उम्मीद है। बहरहाल, अब देखना ये है कि कांग्रेस उनकी सोच का और कहां -कहां प्रयोग करती है।
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