गोपेंद्र नाथ भट्ट, डूंगरपुर:
RamNavami 2022 : राजस्थान के दक्षिणांचल में उदयपुर संभाग के बाँसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों की सीमाओं पर माहीनदी के निकट स्थित डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गाँव को वागड़ की छोटी अयोध्या भी कहा जाता है। भीलूड़ा गाँवमें अयोध्या के साथ ही मथुरा नगरी के दर्शन भी होते हैं। यहाँ के प्राचीन और ऐतिहासिक रघुनाथ मन्दिर में स्थापित नयनाभिरामी काले रंग की मूर्ति में भगवान राम और कृष्ण की छवि के एक साथ दर्शन होते हैं।
बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि अयोध्या में बन रहे भगवान राम के भव्य मन्दिर के निर्माण में राजस्थान के पत्थरों और कारीगरों का अभूतपूर्व योगदान है। विशेष कर दक्षिणी राजस्थान के वागड़ अंचल के वास्तुकारों द्वारा देश विदेश में कई भव्य मन्दिर, स्मारक और इमारतें बनाई गई है। गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में स्थान दर्ज कराने वाले दिल्ली के अक्षर धाम मन्दिर के मुख्य वास्तुकार भी इसी अंचल के है। डूंगरपुर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डॉ.नागेन्द्र सिंह ने यहाँ की स्थापत्य कला को देश विदेश में खूब ख्याति दिलाई।
डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गाँव में एक हजार वर्ष से भी प्राचीन रघुनाथ मन्दिर के कारण भीलूड़ा गांव ना सिर्फ छोटी अयोध्या कहलाया बल्कि इसे पावन तीर्थ स्थल भी माना गया। यह मंदिर डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा उपखण्ड से आठ किलोमीटर दूर बांसवाड़ा मार्ग पर माही नदी के मुहाने पर स्थित है। बताया जाता है कि 124 वर्षों पूर्व डूंगरपुर के तत्कालीन राजा महारावल विजय सिंह ने अयोध्या में स्थापित करने के लिए एक सुन्दर श्रीराम प्रतिमा तैयार कराई थी।
इस विग्रह में जहां धनुष-बाण के कारण भगवान राम की छवि है, वहीं एक पैरका अंगूठा नहीं होने और कमर में झुकाव होने के कारण इसे भगवान श्रीकृष्ण के रूप में देखा जाता है। यह अलौकिक छवि और दिव्य मूर्ति जब पूर्णतया बनकर तैयार हुई तो अपने सेवकों को विग्रह बैलगाड़ी से अयोध्या ले जाने का आदेश देकर महारावल सभी इंतजाम कर अयोध्या चले गए। महारावल विजय सिंह का उत्तर प्रदेश के बनारस से गहरा रिश्ता था। उन्होंने अपने पुत्र लक्ष्मण सिंह का विवाह भिंगा(बनारस) की राजकुमारी से जो कराया था। बाद में बनारस हिंदू विश्व विद्ध्यालय की स्थापना में भी उनका अपूर्व योगदान रहा। (RamNavami 2022)
राज्यादेश से डूंगरपुर से अयोध्या ले जाते समय रात हो जाने से परम्परागत ढंग से सज्य की गई दिव्य मूर्ति ले जाने वाले लोग रात्रि विश्राम के लिए भीलूड़ा गाँव में रूक गए। अगली सुबह जब वे आगे की यात्रा के लिए रवाना हुए तो प्रतिमा को ले जाने वाली बैलगाड़ी अपने स्थान पर अडिग हो गई और काफी जतन के बाद भी रघुनाथ जी का विग्रह एक कदम भी आगे नहीं सका। बताते है कि उसी रात सपने में महारावल विजय सिंह को भगवान का दृष्टांत एवं आदेश प्राप्त हुआ कि यह मूर्ति भीलूड़ा में जिस मंदिर में रुकी है वहीं पर उसे प्रतिष्ठित कर दिया जाए। (RamNavami 2022)
इसके बाद महारावल के निर्देश पर रघुनाथ श्री राम प्रतिमा को भीलूड़ा गाँव के अतिप्राचीन रघुनाथ मंदिर में प्रतिष्ठित कर दिया गया। मन्दिर में मिले एक शिलालेख के अनुसार आज से करीब 482 वर्ष पूर्व के रियासत कालीन डूंगरपुर के महारावल पृथ्वीराज सिंह के काल का वर्णन भी अंकित है। पृथ्वीराज सिंह महारावल उदय सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। महारावल उदय सिंह अपने कुटुम्बी मेवाड़ के राणा सांगा के साथ देते हुए भारत में मुगल साम्राज्य के संस्थापक और प्रथम शासक बादशाह बाबर के साथ हुए खानवाके युद्ध में 1527 में वीरगति प्राप्त हो गए थे। (RamNavami 2022)
इसके बाद डूंगरपुर राज्य दो भागों में विभक्त हो गया और माही नदी के दूसरे छोर पर नवगठित बाँसवाड़ा राज्य पर महारावल उदय सिंह के दूसरे पुत्र जगमाल सिंह का राज्याभिषेक हुआ। जबकि शासन के मूल भाग डूंगरपुर के राजा पृथ्वीराज सिंह बनें। भीलूड़ा मंदिर में मिले शिलालेख पर वि.स.1597 (ई.स.1540) लिखा हुआ है जोकि उस समय मंदिर काजीर्णोद्धार काल होना बताता है। मंदिर में लगे एक अन्य शिलालेख के अनुसार महारावल जसवंत सिंह द्वितीयके शासनकाल में विक्रम संवंत 1879 आषाढ़ शुक्ल 11 रविवार के दिन मंदिर के शिखर का निमार्ण हुआ है।
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