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krishna janmashtami: कृष्ण जन्माष्टमी पर होती है नदी की मिट्टी से बने कानुडा को पूजा, जानें यहां की परंपरा

• LAST UPDATED : September 7, 2023

India News(इंडिया न्यूज),krishna janmashtami: भगवान श्री कृष्ण का नाम आते ही उनकी लीलाएं दिल और दिमाग में घूमने को लगती है और साथ शांत बैठा व्यक्ति भी भाव विभोर हो जाता है। आज भगवान श्री कृष्ण की जन्माष्टमी का महा उत्सव पूरे विश्व में मनाया जा रहा है। विष्णुतत्त्व का यह त्यौहार बड़े ही जोरों और शोरों के साथ में शहरो और ग्रामीण स्तरों में बड़ी ही आस्था के साथ में अलग-अलग परंपराओं मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है। आज के दिन भगवान कृष्ण की लीला के मटकी फोड़ कार्यक्रम का आयोजन भी कई जगह देखने को मिलता है। शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में मटकियों को बांधकर नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की के जयकारों से यह त्यौहार मनाया जा रहा है। इस त्योहार का ग्रामीण क्षेत्र में कुछ अलग ही मानता है।

बाल मूर्त के गरबा नृत्य

कृष्ण जन्माष्टमी के एक दिन पहले ही गांव में रहने वाली महिलाएं युवतियों और बच्चे पूरे परिवार के साथ नदी के पास में जाकर नदी की मिट्टी से हाथ से बने हुए कानुडा की मूर्ति के रूप में बनाते हैं और वही मिट्टी से बने कानुडा को पूजा जाता है। ढोल धमाका के साथ में उस बाल मूर्त के गरबा नृत्य किया जाता है। भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप लड्डू गोपाल ग्रामीण क्षेत्र में कानुडा के नाम से भी पुकारा जाता है। उन्हें 10 दिन के लिए घर में लाया जाता है। कानुडा को पूरे घर में और अपने रिश्तेदारों में सिर पर विराज कर भ्रमण करवाया जाता है। 10 दिन तक चलने वाला यह त्यौहार कानुडा महोत्सव के रूप में गांव में बहुत ही ज्यादा प्रचलित है।

कृष्ण लीला की झांकियां

कानुडा महोत्सव को लेकर भगवान श्री कृष्ण को अपने बेटे के रूप में भक्त पूजते हैं। पूरे विश्व में एक ही ऐसे भगवान है, जिनको एक बेटे के रूप में, एक दोस्त के रूप में और एक भाई के रूप में भगवान के भाव को देखा जाता है। इसी भाव पर कृष्ण भक्ति में लीन होकर कृष्ण लीला की झांकियां सजाते हैं। इस त्यौहार को शहरो के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी बड़ी शिद्दत से मनाया जाता है। दूध पंचामृत से भगवान का भोग लगा दिया जाता है। विशेष कर भगवान को माखन मिश्री का भोग लगाकर भगवान श्री कृष्ण की पूजा अर्चना की जाती है। हर शाम को गोवर्धन वेला में गायों के बीच में कानुडा को रखकर भगवान श्री हरि की भक्ति की जाती है। 10 दिन के बाद इसी कानुडा को घर में रखें मिट्टी के गमले में विसर्जन किया जाता है इससे एक प्रकार इको फ्रेंडली त्योहार भी इसी कार्यक्रम में मनाया जाता है ।

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