इंडिया न्यूज, जम्मू-कश्मीर (Amarnath Cloudburst): अमरनाथ की पवित्र गुफा के पास 8 जुलाई को बादल फटने से सैलाब में लोगो की जान चली गई। अमरनाथ में दर्शन के लिए लोग बहुत दूर- दूर से आते है। अमरनाथ की पवित्र गुफा के पास 8 जुलाई को बादल फट गया, जिससे बहुत से लोगो की जान चली गई। इसमें राजस्थान के भी 7 यात्रियों की मौत हो गई। हादसे के वक्त बाड़मेर से यात्रा पर गए यात्री राजेश खत्री, राकेश कुमार बोथरा और डॉक्टर जीसी लखारा समेत 6 लोग भी हादसे में मौके पर ही फंस गए थे।
अमरनाथ की पवित्र गुफा के पास 8 जुलाई को बादल फटने से आए सैलाब में 16 लोगों की जान चली गई थी। इसमें राजस्थान के भी 7 यात्रियों की मौत हुई थी। हादसे के वक्त बाड़मेर से यात्रा पर गए यात्री राजेश खत्री, राकेश कुमार बोथरा और डॉक्टर जीसी लखारा समेत 6 लोग भी हादसे में मौके पर ही फंस गए थे। हादसे के वक्त लोग जान बचाने के लिए पहाड़ों पर चढ़ने लगे थे। हर तरफ महिला और बच्चों की चीख सुनाई दे रही थी। उन्होंने बताया आंखों के सामने ही जिस भंडारे में खाना खाया था वो 40 लोगों के साथ बह गया।
राजेश खत्री ने बताया- 5 जुलाई को बाड़मेर से निकले थे। जम्मू-कश्मीर के चंदनवाड़ी से पैदल यात्रा शुरू की थी। दो दिन में पंचतरणी पहुंचे। पंचतरणी से अमरनाथ 8 जुलाई को दोपहर 3 बजे पहुंचे। करीब 3:30 बजे दर्शन करके हम लोग वहां से निकले। फिर खाना खाकर करीब 5 बजे टेंट में पहुंचे। हम लोग बात कर रहे थे कि यहां रुके या धीरे-धीरे रवाना हो जाते हैं। जत्थे में कुछ लोग रुकने का कह रहे थे। कुछ चलने के लिए बोल रहे थे। फिर सबने तय किया रुक जाते हैं।
शाम करीब 5:45 बजे अचानक बारिश तेज हो गई। दस मिनट बाद तेज तूफान आ गया। टेंट वाला चिल्ला-चिल्ला कर बोल रहा था कि यहां से भागो तूफान आ रहा है। हमारे साथियों ने भागना शुरू किया, लेकिन सुरक्षित जगह नहीं मिली। हमारी आंखों के सामने जिस टेंट में रुके थे, वो बह गया। फिर पहाड़ की तरफ जाने लगे तब पहाड़ भी धंसने लगा। फिर घास वाले पहाड़ पर पहुंचे। जिस भंडारे में खाना खाया उसमें बैठे 40 लोग बह गए थे।
डॉक्टर जीसी लखारा का कहना है कि वहां स्थिति ऐसी थी कि किसी को पता नहीं था कि कहां पर सुरक्षित रहेंगे। न लोगों को बर्फ का पता चल रहा था। न मलबे का। लोग पहाड़ों पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह भी बर्फ पिघलने से फिसलकर नदी में ही जाकर गिर रहे थे। बुजुर्ग, बच्चे, महिलाएं चिल्ला रही थीं। हाहाकार मचा हुआ था। हमने अपनी जान बचाते हुए लोगों को सहारा देकर बाहर निकालने की कोशिश की।
बाड़मेर से 3 जुलाई राजेश कुमार पुत्र अमृतलाल खत्री, राकेश कुमार बोथरा, जेसी लखारा, मनीष खत्री पुत्र चेतनदान, ओमसिंह, नरेंद्र चंडक, वकील दानसिंह, प्रवीण शर्मा व कैलाशसिंह रवाना हुए थे। इसमें से वकील दानसिंह खच्चर पर चढ़कर दर्शन करके हादसे से पहले वहां से निकल गया था। आठ लोग फंस गए थे। इसमें से 6 लोग मंगलवार को बाड़मेर पहुंचे। 2 लोग दिल्ली रुके हुए है।
राकेश कुमार ने कहा- हमे तो कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ? बादल फटने की सूचना भी बाड़मेर से फोन पर मिली थी। परिवार व दोस्तों के लगातार कॉल आ रहे थे। एक-एक करके हमारे 7 लोगों के मोबाइल स्विच ऑफ हो गए। हमने सभी को काॅल करने के लिए मना किया। एक ही फोन चालू है। ज्यादा कॉल करेंगे तो वह भी बंद हो जाएगा। इसके बाद रात करीब 2 बजे वापस पंचतरणी पहुंचे।
हादसे के करीब आधा घंटे बाद सेना, ITBP, CRPF, BSF, NDRF और SDRF के साथ जम्मू-कश्मीर पुलिस की टीम ने रेस्क्यू शुरू कर दिया था। करीब उस समय 20-30 हजार लोग थे। रेस्क्यू करके सबको वहां से निकाला।
राकेश कुमार बोथरा ने कहा कि हमारी किस्मत अच्छी थी। नया जन्म मिला है। उस मंजर को देखकर हर कोई अपनी-अपनी जान बचाने में लगा हुआ था। राकेश कुमार का कहना है कि उस वक्त हम कोई यहीं सोच रहा था कि किसी तरीके से जान बचाई जाए। यही दिमाग में चल रहा था। पास में खड़ी महिलाएं-बच्चे चिल्ला रहे थे। उस समय सभी लोग एक-दूसरे का हौसला बढ़ा रहे थे। डरो मत कुछ नहीं होगा। भोलेनाथ सब अच्छा करेंगे।
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