तनवीर जाफरी:
Article on Hijab Controversy : ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा देने वाले हमारे देश के भारतीय जनता पार्टी शासित राज्य कर्नाटक की राजधानी बंगलौर से लगभग सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मांड्या जिले के एक कॉलेज की वीडिओ इन दिनों पूरे विश्व में वायरल हो रही है
जिसमें हिजाब पहने कॉलेज की एक अकेली मुस्लिम छात्रा को दर्जनों लोग कॉलेज कैम्पस में घेरे हुये हैं और उसके हिजाब पहनने का विरोध कर रहे हैं। साथ साथ यह युवक ‘जय श्री राम’ के नारे भी लगा रहे हैं। युवकों की इस भीड़ को देखकर साफ पता चलता है कि ये वे लोग हैं जिन्हें बाकायदा भगवा ब्रिगेड ने प्रशिक्षित किया है।
हिजाब पहनने वाली छात्राओं का अचानक कर्नाटक में इतना विरोध बढ़ जायेगा और यह देश के अन्य राज्यों में भी फैल जायेगा यहाँ तक कि हिजाब पहनने के विरोध में भगवा गमछा गले में डाल कर हिंदूवादी संगठन हिन्दू छात्राओं को भी कॉलेज भेजने लगेंगे इसकी उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी। परन्तु सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की एक साजिश के तहत यह किया गया। और इस ‘हिजाब बनाम भगवा गमछा’ के सुनियोजित विवाद की आग से निकला धुआँ देश के अन्य राज्यों में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में फैल गया। (Article on Hijab Controversy)
मैं उन लड़कियों की धार्मिक भावनाओं का भी आदर करता हूँ जो अपनी धार्मिक परम्पराओं व मान्यताओं का सम्मान करते हुये हिजाब अथवा नकाब(धारण) करती हैं। साथ ही हिजाब अथवा नकाब न धारण करने वाली उन महिलाओं का भी समान रूप से सम्मान करता हूँ जो अपनी स्वतंत्रता व मानवाधिकार का इस्तेमाल करते हुये हिजाब अथवा नकाब धारण नहीं करतीं। परन्तु दक्षिणपंथियों की इस दलील से कतई सहमत नहीं कि यदि हिजाब पहनना है तो कॉलेज के बजाये मदरसे में जाकर पढ़ाई करें।
यदि किसी लिबास के कारण उसके स्थान व गंतव्य निर्धारित किये जाने लगे फिर तो किसी भी साधु या मुल्ला को मुख्यमंत्री सांसद अथवा विधायक बनने के बाद अपने धार्मिक लिबास में संसद अथवा विधानसभा में ही नहीं जाना चाहिये क्योंकि ‘हिजाब+मदरसा’ थ्योरी के अनुसार तो भगवा लिबास केवल मठ मंदिर आश्रम तक ही सीमित रहना चाहिये और किसी निर्वाचित मौलवी को भी अपना धार्मिक लिबास पहन कर सदन में आने के बजाये केवल मस्जिद/मदरसे में ही जाना चाहिये? (Article on Hijab Controversy)
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि दक्षिणपंथी संप्रदायिकतावादियों के इस हिजाब विरोध में उनका दोहरापन भी साफ नजर आता है। जब यही मुस्लिम महिलायें हिजाब /नकाब/बुर्का पहन कर गुरुपूर्णिमा में किसी गुरूजी की आरती उतारती नजर आती हैं, जब यही हिजाबधारी व नकाबपोश महिलाएं भगवन राम की आरती उतारती हैं, जब यही मुस्लिम महिला स्वयं हिजाब /नकाब ओढ़े अपने बच्चे को श्री कृष्ण का लिबास पहनाकर श्री कृष्ण जन्माष्टमी में श्री कृष्ण की भूमिका अदा करने ले जाती है(Article on Hijab Controversy)
तब यही ‘प्रशिक्षित हिजाब विरोधी’ उसके हिजाब का विरोध करने के बजाये उनका स्वागत करते दिखाई देते हैं, उनपर पुष्प वर्षा करते हैं। जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक द्वारा गठित राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के किसी आयोजन में मुस्लिम महिलायें हिजाब,नकाब या बुर्के में शिरकत करती हैं और भजन कीर्तन करती हैं तब यही हिजाब विरोधी उनका स्वागत करते व उनके साथ खड़े दिखाई देते हैं? परन्तु कॉलेज की छात्रा का हिजाब पहनना इनसे सहन नहीं होता?
इसी वर्ष 8 जनवरी को केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खां ने उज्जैन के महाकाल मंदिर में ज्योतिर्लिङ्ग के दर्शन किये। उन्होंने यहाँ भोग आरती में शिरकत की। उन्हें मंदिर के पुजारियों द्वारा पूजा कराई गयी। उनका पूरा सम्मान किया गया तथा उन्हें सम्मान स्वरूप प्रशाद व सिरोपा आदि भेंट किया गया। निश्चित रूप से आरिफ मोहम्मद खां का मंदिर में जाना, वहां की परंपरानुसार पूजा पाठ में शरीक होना और मंदिर के पुजारियों द्वारा बिना उनका धर्म जाति पूछे उन्हें पूरा मान सम्मान देना हमारी गंगा यमुनी तहजीब की जीवन्त मिसाल है और इसका सर्वत्र स्वागत किया जाना चाहिये।
परन्तु यदि यह सही है तो डासना के मंदिर के बाहर लगे सार्वजनिक पियाऊ पर एक प्यासे मुस्लिम बच्चे का मात्र पानी पीना अपराध कैसे हो गया? किस आधार पर और किस मानसिकता के चलते उस बच्चे की यह कहते हुये पिटाई की गयी कि वह मुसलमान होकर मंदिर के पियाऊ पर पानी पीने कैसे गया?
मंदिर के पियाऊ के पानी को केवल हिन्दुओं के लिये ‘सर्वाधिकार सुरक्षित’ करना क्या इससे भगवान श्री राम खुश होंगे? उदारवादी हिंदुत्व तो ऐसी शिक्षा नहीं देता? इसी प्रकार देश के अनेक मंदिरों व धर्मस्थानों पर इस आशय का बोर्ड लगा देखा जा सकता है जिसमें लिखा है कि यहाँ मुसलमानों का प्रवेश वर्जित है। हालांकि यही भाषा देश के अनेक मंदिरों में दलितों के लिये भी लिखी गयी है।(Article on Hijab Controversy)
पिछले दिनों राहुल गाँधी के लोकसभा में दिये गये भाषण से तिलमिलाये प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में इस बात पर चिंता जताई कि विपक्ष के लोग देश की बदनामी में लगे हैं। कर्नाटक का मांड्या हिजाब कांड पूरी दुनिया में क्या देश का मान बढ़ा रहा है? देश की बदनामी की चिंता करने वालों को सोचना चाहिये कि आखिर क्यों शिक्षा विरोधी तालिबानी कट्टरपंथियों की गोली का शिकार हो चुकी नोबल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई को अपने ट्वीट में यह कहना पड़ा कि कॉलेज हमें पढ़ाई और हिजाब के बीच चयन करने के लिए मजबूर कर रहा है।
‘लड़कियों को उनके हिजाब में स्कूल जाने से मना करना भयावह है। महिलाओं को एक सामान की तरह मानना अभी भी जारी है। भारतीय नेताओं को मुस्लिम महिलाओं के हाशिए पर जाने से रोकना चाहिए। क्या मलाला की यह टिप्पणी दुनिया का ध्यान आकर्षित नहीं करेगी। अमेरिका तक इस घटना की गूँज क्या देश की बदनामी का सबब नहीं है? यह स्थिति विपक्षी दलों के बदनाम करने से नहीं बल्कि सत्ता के संरक्षण में चल रहे सांप्रदायिकतावादी व छात्रा विरोधी अभियान के चलते बनी है।(Article on Hijab Controversy)
अतिवादियों की इस प्रकार की भ्रम पूर्ण ‘कारगुजारियां ‘ जहाँ यह जाहिर करती हैं कि इनके ‘सांप्रदायिकतावादी विरोध’ का कोई मापदण्ड नहीं है बल्कि यह अपने आकाओं के इशारे पर अपनी राजनैतिक सुविधानुसार और सामाजिक ध्रुवीकरण के मद्देनजर समय समय पर जगह जगह उपद्रव करते दिखाई देते हैं
वहीं इससे यह भी साबित होता है कि इन्होंने शिक्षा के उन मंदिरों को भी ध्रुवीकृत करने की कोशिश शरू कर दी है जो बच्चों को धर्म जाति के स्तर से ऊपर उठकर सीखने,सोचने व निखरने का अवसर प्रदान करते हैं तथा परस्पर मेल जोल की भावना के साथ देश को आगे ले जाने में अपनी प्रतिभाओं का उपयोग करते हैं। (Article on Hijab Controversy)
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