Sunday, July 7, 2024
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Shani Dev: सरसों के तेल के चढ़ावे से शनिदेव क्यों होते है प्रसन्न? जानें इसकी कथा

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India News(इंडिया न्यूज़), Shani Dev: हिंदू ग्रंथो में शनिवार के दिन शनि देव को बोलना शुभ माना जाता है। मान्यता तो ये भी है कि कभी भी शनि मंदिर में शनिदेव की प्रतिमा के सीट में खड़े होकर पूजा नहीं की जाती है। साथ ही उनकी प्रतिमा को घर में स्थापित भी नहीं किया जाता। वहीं आप सूर्यपुत्र शनिदेव के बारे में जितनी जानकारी हासिल करेंगे उनकी कृपा आप पर उतनी ही ज्यादा बनी रहेगी। वहीं अपने दुखों से परेशान लोग शनिवार के शाम को शनिदेव के सामने दीपक जलाकर उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं। कहा जाता है कि शनिवार को सरसों के तेल का दीपक जलाने से शनि देव पंसन होते है। ऐसे में आपने भी कभी ना कभी शनिदेव को तेल चढ़ाया होगा।

ये है शनि देव की कथा

शास्त्रों में बताया जाता है कि शनि देव को अपनी शक्तियों और ताकत की वजह से बहुत घमंड था। और उस समय ही हनुमान जी की कीर्ति एवं बल की चर्चा हर जगह हो रही थी। हर कोई बस बजरंगबली के यश, कीर्ति एवं बल की तारीफ कर रहा था। परंतु शनि देव को हनुमान के बल यह गुणगान पसंद नहीं आई। जिस वजह से उन्होंने हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारा था।
ऐसे में जब युद्ध के लिए शनि देव हनुमान जी के पास गए, तो वह भगवान राम की भक्ति में मग्न थे। उस समय ही शनि देव ने हनुमान जी को युद्ध के लिए बोला। इस बात के बाहर आने पर हनुमान जी ने शनि देव को समझाने की भी कोशिश की। उन्होंने कहा कि वे अभी युद्ध नहीं कर सकते परंतु शनि देव ने उनकी एक न सुनी और अपनी युद्ध की बात पर अड़े रहे।

अंत में हनुमान जी को युद्ध के लिए मानना पड़ा। जिसके बाद उन दोनों देव शक्तियों के बीच युद्ध हुआ। हनुमान जी पर शनि देव पर बहुत तेज़ प्रहार किए। जिससे हनुमान जी को काफी घाव लगे। युद्ध में शनि देव को भी काफी हानी हुई। जिससे उन्हें पीड़ा होने लगी। ऐसे में हनुमान जी ने उनके घाव पर सरसों का तेल लगाया था। इससे शनि देव को पीड़ा में आराम मिला। कुछ समय बाद उनके घाव पूरी तरह से भर गए और उनका दर्द भी बिल्कुल ठीक हो गया।
इस सब चीजों के बाद शनि देव का कहना था कि जो भी भक्त उन्हें सच्चे मन से पूजने के बाद सरसों का तेल अर्पित करेगा। वहीं उस भक्त के सभी संकटों को हर लेगें। तब से आज तक शनि देव को प्रसन्न करने के लिए सरसों का तेल चढ़ाने की परंपरा चलती आ रही है। उन्हें सरसों का तेल चढ़ाने से साढ़ेसाकती का भी अंत होता है।

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