India News Rajasthan (इंडिया न्यूज़), Rajasthan Politics: राजस्थान में एक बार फिर चिरंजीवी योजना को लेकर सियासी संग्राम शुरू हो गया है। जहां पहले इस योजना का नाम बदला गया था, वहीं अब इस योजना में कई बड़े बदलाव किए जाने वाले हैं। क्या होंगे बदलाव, आइए जानते हैं
छह महीने पहले सत्ता में आई भाजपा की भजनलाल सरकार ने पहले ही पिछली गहलोत सरकार की चिरंजीवी योजना का नाम बदलकर मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना कर दिया है। अब उसके बाद राजस्थान सरकार इसमें कई और बदलाव करने जा रही है। माना जा रहा है कि योजना में सूचीबद्ध निजी अस्पतालों को क्लेम देने की प्रक्रिया को सरल बनाया जाएगा। योजना में 25 लाख रुपये के मुफ्त क्लेम की जगह महंगे इलाज के लिए अलग से बजट प्रावधान करने की तैयारी की जा रही है। विधानसभा सत्र के बाद इसकी औपचारिक घोषणा की जा सकती है।
चिरंजीवी योजना को लेकर प्रदेश में चल रही राजनीतिक बयानबाजी के बीच भजनलाल सरकार ने इस योजना में कई बदलाव करने की दिशा में काम तेज कर दिया है। योजना से जुड़े सभी हितधारकों की समस्याओं का समाधान कर योजना को नए सिरे से लाया जाएगा। इसमें बदलाव कर मरीजों को सस्ता इलाज मुहैया कराने, निजी अस्पतालों के दावों का निपटान करने और बीमा कंपनियों की समस्याओं के समाधान पर फोकस किया जा रहा है। सरकार इन तीनों पर मंथन कर रही है।
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बताया जा रहा है कि अब मरीजों को निजी क्षेत्र की तरह इलाज की सुविधा देने पर विचार हो रहा है। योजना में सूचीबद्ध अस्पताल मरीजों का इलाज करेंगे और राज्य सरकार बीमा कंपनी को भुगतान करेगी। चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने कहा कि हम इस योजना को सफल बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि ज्यादातर मरीजों को 3 लाख रुपए तक के इलाज की जरूरत होती है। राज्य सरकार ट्रांसप्लांट और अन्य महंगे इलाज के लिए अलग से बजट प्रावधान रखेगी। ऐसे मामलों में राज्य सरकार सीधे पैसा देगी। हालांकि, यह पूरी प्रक्रिया अभी विचाराधीन है।
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माना जा रहा है कि सब कुछ तय होने के बाद नए सिरे से इस योजना की औपचारिक घोषणा की जाएगी। स्वास्थ्य मंत्री ने इस योजना को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले हम भामाशाह योजना लेकर आए। पिछली गहलोत सरकार की चिरंजीवी योजना में कई खामियां थीं। पिछली सरकार ने 25 लाख रुपए के मुफ्त इलाज का दावा किया था। लेकिन प्रदेश में सिर्फ एक केस में 13 लाख रुपए का इलाज हुआ है। जबकि सिर्फ दो-तीन केस में ही 8 लाख रुपए का इलाज हुआ है। इसके अलावा ज्यादातर मामलों में मरीजों का इलाज 3 लाख रुपए या उससे कम में हुआ है।
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