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Karwa Chauth History: करवा चौथ शुरूआत, जानें किसने रखा था सबसे पहले ये व्रत

• LAST UPDATED : October 28, 2023

India News(इंडिया न्यूज़), Karwa Chauth History: सनातन धर्म में करवा चौथ व्रत को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन हर शादीशुदा महिला अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखती है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में महिलाएं भी अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखती थीं। इतना ही नहीं करवा चौथ व्रत को लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हैं।

कब है करवा चौथ

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, करवा चौथ का व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस साल यह तिथि 31 अक्टूबर 2023 को रात 9:30 बजे से शुरू होगी, जो 1 नवंबर 2023 को रात 9:19 बजे समाप्त होगी। हालांकि, उदया तिथि के अनुसार, इस साल करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर को मनाया जाएगा।

पौराणिक कथाओं के अनुसार सबसे पहले यही व्रत रखा जाता है। माता पार्वती ने भगवान शंकर के लिए यह व्रत किया था और इस व्रत के प्रभाव से उन्हें भी अपार सौभाग्य की प्राप्ति हुई। तब से लेकर आज तक विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए यह व्रत रखती हैं। हालाँकि, यह भी कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मदेव ने सभी महिलाओं को अपने पतियों के लिए करवा चौथ का व्रत रखने के लिए कहा था, जिसके बाद यह परंपरा शुरू हुई। इससे जुड़ी पौराणिक कथा भी प्रचलित है।

करवा चौथ के व्रत से जुड़ी कथाएं

करवा चौथ के व्रत से जुड़ी कथाएं महाभारत काल में भी प्रचलित हैं। एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने द्रोपती को करवा चौथ का व्रत रखने को कहा था। कहा जाता है कि जब अर्जुन नीलगिरि पर्वत पर तपस्या कर रहे थे तो पांडवों पर कई तरह की परेशानियां आने लगीं। इसके बाद द्रौपती ने श्रीकृष्ण से मदद मांगी। तब भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपती को कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत रखने को कहा। जिसके परिणामस्वरूप पांडवों को संकटों से मुक्ति मिल गई।

करवा चौथ के व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवताओं और दानवों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया और अपनी सारी शक्ति लगाने के बावजूद भी देवताओं को हार का सामना करना पड़ रहा था, तब ब्रह्मादेव ने अपने पति की रक्षा के लिए कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को देवी-देवताओं को करवा चौथ का व्रत रखने के लिए कहा गया। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से ही देवता राक्षसों पर विजय पाने में सफल हुए थे। यह समाचार सुनकर स्त्रियाँ बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने अपना व्रत खोला। तभी से यह व्रत पतियों की सलामती के लिए मनाया जाने लगा।

 

 

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