India News (इंडिया न्यूज़),Politics News: राजस्थान में विधानसभा चुनाव में अब केवल कुछ ही समय बचा है। जिसको लेकर सभी राजनीति पार्टियों की तैयारियां शुरू हो चुकी है। लेकिन कांग्रेस पार्टी में चल रही घमासान कम होती नजर नही आ रही। इस बीच राजनीति के गलियारों में सचिन पायलट की कांग्रेस से अलग नई पार्टी की चर्चाएं भी तेज है। सभी की निगाहें असंतुष्ट चल रहे सचिन के अगले कदम पर टिकी हुई हैं। रविवार यानी 10 जून को दौसा में उनके पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर बड़ा कार्यक्रम रखा गया है, कहा जा रहा है कि इस कार्यक्रम में पायलट अपनी पार्टी का ऐलान कर सकते है। बता दें कि राजस्थान में कांग्रेस नेता सचिन पायलट द्वारा बड़ा सियासी एलान करने की संभावनाओं पर फिलहाल ब्रेक लग गया है।
11 जून को सचिन ने अपने पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर दौसा के भंडाना में एक सभा को संबोधित करते हुए सीएम अशोक गहलोत पर फिर तंज कसा और कहा कि पांच साल प्रदेशाध्यक्ष रहा तो सरकार के दांत खट्टे कर दिए।
पायलट ने कहा, मैंने साल के 365 दिन वसुंधरा सरकार का विरोध किया। कभी कोई गलत बात नहीं कही, लेकिन यदि उनके खान आवंटन का मामला उठा और उसे रद्द कर दिया गया तो इसकी जांच तो होनी ही चाहिए। किसी ने सही कहा है कि हर गलती सजा मांगती है। हमारे आपस में कैसे भी संबंध हों, सबसे बड़ा न्याय नीली छतरी वाला देता है। आज नहीं तो कल न्याय जरूर मिलेगा। मैंने हमेशा युवाओं के हित की बात की। हमारी कुछ कमी है तो बताना चाहिए। हम भ्रष्टाचार से मुक्त राजनीति चाहते हैं। मैं इन मांगों को लेकर लड़ता रहूंगा।
कांग्रेस के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के भाषण के बाद राजनीतिक गलियारों में ये तो साफ हो गया है कि अब वे कोई नई पार्टी नहीं बनाएंगे। बल्कि कांग्रेस में ही रहकर अपनी पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतरेंगे। सचिन के करीबी और कांग्रेस के बड़े नेताओं का भी मानना है कि सचिन की मजबूरी है कि अब उन्हें कांग्रेस में ही रहना पड़ेगा, तो वहीं कांग्रेस के लिए भी पायलट को पार्टी में बनाए रखना बेहद जरूरी है। बता दें कि पायलट के समर्थक विधायक भी नहीं चाहते हैं कि वे कांग्रेस छोड़ें। खासकर कर्नाटक के नतीजों के बाद कांग्रेस ने जिस तरह नई संभावनाएं जगाई हैं, उसे देखते हुए इस वक्त कांग्रेस को छोड़ना और नई पार्टी बनाना न ही कांग्रेस के लिए और न ही सचीन पायलट के लिए किसी भी तरह सही नहीं होगा।
बातचीत में राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार का कहना हैं कि राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट कांग्रेस के जाने माने चेहरे हैं। गहलोत के बाद पायलट दूसरे नंबर आते हैं। उन्होंने पार्टी छोड़ने जैसा निर्णय इसलिए नहीं किया, क्योंकि वे जानते थे कि अगर वे नई पार्टी बनाने का फैसला लेते हैं तो पिछले 20 वर्षों में जो समर्थक उन्होंने जुटाए वे उनसे अलग हो जाएंगे।
कांग्रेस से जुड़े विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान सियासी बवाल को थामना चाहती है। दूसरी ओर पायलट अपने मुद्दों को लेकर पीछे हटने को तैयार नहीं है। ऐसे में आलाकमान की पूरी कोशिश है कि पायलट को मना लिया जाए। इसके लिए एक फार्मूला तैयार किया गया है, जिसमें माना जा रहा है कि दिल्ली में हुई बैठक के बाद वेणुगोपाल ने साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात कही है। उसके पीछे कहीं न कहीं पायलट को एक बार फिर राजस्थान प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष का ताज पहनाने की कोशिश की जा रही है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस ने इसकी लगभग पूरी तैयारी कर ली है। ऐसे में इसे कांग्रेस में फैले बवाल और पायलट की नई पार्टी की घोषणा को रोकने से जोड़ा जा रहा है।