(जयपुर): गुजरात चुनावों में कांग्रेस की बुरी तरह हार ने इस बार 2013 के राजस्थान विधानसभा चुनावों के नतीजों की याद दिला दी है। गुजरात में बुरी तरह हार और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत का राजस्थान कनेक्शन है। इसका राजस्थान कांग्रेस की सियासत पर भी जरूर असर देखने को मिल सकता है।
गुजरात में प्रदेश प्रभारी रघु शर्मा, चुनावों में सीनियर ऑब्जर्वर रहे सीएम अशोक गहलोत इस बार रणनीतिक मोर्चे पर जादू दिखाने में पूरी तरह विफल साबित हुए हैं। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत का परसेप्शन के मोर्चे पर सचिन पायलट को फायदा मिलेगा। पायलट हिमाचल प्रदेश में ऑब्जर्वर थे।
गुजरात चुनावों में हुई बुरी हार की जिम्मेदारी लेते हुए प्रदेश प्रभारी रघु शर्मा ने कांग्रेस अध्यक्ष को चिट्ठी लिखकर पद से इस्तीफे की पेशकश की है। गुजरात-हिमाचल प्रदेश नतीजों पर गहलोत ने अब तक कोई बयान नहीं दिया है। पिछले गुजरात चुनाव में अशोक गहलोत ने जिस तरह से रणनीति से चुनाव लड़ा था और अच्छी खासी सीट हासिल की थी, इस बार इसके उल्टे हालात खराब हो गए हैं।
गुजरात चुनावों में बुरी तरह हार के लिए प्रदेश प्रभारी, प्रदेशाध्यक्ष और स्टेट लीडरशिप के अलावा सीनियर ऑब्जर्वर के तौर पर गहलोत के हिस्से भी जिम्मेदारी आती है। गुजरात चुनावों पर इस बार गहलोत उस तरह से फोकस नहीं कर सके थे, जैसी उनकी चिर परिचित स्टाइल हैं। इस बार गहलोत राजस्थान में ज्यादा उलझे रहे।
25 सितंबर को गहलोत गुट के विधायकों के विधायक दल की बैठक के बहिष्कार करने के बाद हुए सियासी बवाल के कारण गुजरात से फोकस हट गया। राजस्थान कांग्रेस की सियासी लड़ाई का गुजरात चुनावों की रणनीति, पब्लिक परसेप्शन पर बुरा असर पड़ा।
गुजरात चुनावों में कैंपेन शुरू होने के वक्त गहलोत समर्थक विधायकों के इस्तीफे और फिर हुए विवाद का असर पड़ा। चुनाव प्रचार के आखिर में गहलोत ने पायलट को गद्दार बताकर नया विवाद छेड़ दिया। इन सब विवादों का चुनावी रणनीति पर असर पड़ा।
गुजरात में गहलोत के आब्जर्वर बनने के बाद मंत्रियों और विधायकों की ड्यूटी लगाई थी। 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक के बहिष्कार के साथ ही गहलोत समर्थक विधायकों ने स्पीकर को इस्तीफे दे दिए थे। इस घटना के बाद गुजरात में ड्यूटी लगाए मंत्री-विधायक ग्राउंड पर नहीं गए। राजस्थान के सियासी विवाद में फंसने के कारण ज्यादातर मंत्रियों ने भी गुजरात में ग्राउंड स्तर पर काम नहीं किया।
बता दे कि 2017 में गुजरात चुनावों के दौरान अशोक गहलोत प्रभारी थे। गहलोत के प्रभारी रहते गुजरात में पिछली बार कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थीं। उस वक्त स्थानीय समीकरणों के अलावा गहलोत ने आक्रामक तरीके से चुनाव लड़ने की रणनीति तैयार की थी। हर विधानसभा सीट पर राजस्थान के अपने विश्वासपात्र नेताओं को जिम्मेदारी देकर माइक्रो मैनेजमेंट किया था।
इस बार सीनियर ऑब्जर्वर के तौर पर गहलोत की वह स्टाइल गायब थी। 2017 वाला न ग्राउंड वर्क था, न रणनीति। राजस्थान कांग्रेस के झगड़ों की वजह से गहलोत की गुजरात चुनावों में धार गायब थी। गहलोत ने गुजरात में दो दर्जन के आसपास सभाएं जरूरी कीं, लेकिन ग्राउंड पर चुनाव 2017 वाली रणनीति से नहीं लड़ा गया।
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत का सचिन पायलट ऑब्जर्वर के तौर पर कुछ क्रेडिट जरूर लेंगे। पायलट ने हिमाचल प्रदेश चुनावों में लगातार प्रचार किया था। इस जीत के बाद पायलट का सियासी परसेप्शन बदलेगा, पायलट खेमे को इस जीत से मजबूती मिली है।
हिमाचल की जीत ने पायलट को मोरल ग्राउंड पर जरूर मजबूत किया है। सचिन पायलट खेमा अब आक्रामक होकर इस जीत को अपने पक्ष में भुनाने का प्रयास करेगा। इसके बाद पायलट खेमा गहलोत की रणनीति पर भी सवाल उठाएगा।
गुजरात चुनावों में 2017 में जब गहलोत प्रभारी थे, तब चुनाव लड़ने की स्टाइल से लेकर कैंपेन तक की चर्चा थी। कांग्रेस वॉर रूम से लेकर ग्राउंड तक गहलोत का असर और प्रजेंस थी, इस बार दोनों ही कमजोर थे। गुजरात की हार पर गहलोत की सियासी जादूगर और रणनीतिकार की छवि पर विरोधी सवाल उठाएंगे।
सचिन पायलट को हिमाचल की जीत के बाद सियासी फायदा मिलना तय माना जा रहा है। इन नतीजों के बाद पायलट को गद्दार बताने वाले गहलोत के बयान की फिर से चर्चा शुरू हो गई है। गुजरात की हार से पब्लिक परसेप्शन के मोर्चे पर गहलोत को नुकसान हुआ है, जबकि पायलट को हिमाचल की जीत का फायदा मिलेगा। हिमाचल की जीत से पायलट खेमा दिल्ली से लेकर राजस्थान तक मजबूत हुआ है।
गुजरात चुनावों में कांग्रेस का राजस्थान मॉडल लागू करने वाला चुनावी वादा पूरी तरह बेअसर रहा। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में राजस्थान की जनता को फायदे वाली योजनाएं चुनाव जीतने पर गुजरात में लागू करने का वादा किया था। गुजरात में उस वादे ने काम नहीं किया।
हर पांच साल बाद सरकार बदलने वाले हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन लागू करने का वादा बड़ा मुद्दा बन गया था। हिमाचल प्रदेश में राजस्थान मॉडल लागू करने की गहलोत ने चुनावी सभाओं में घोषणा की थी। हिमाचल में राजस्थान मॉडल लागू करने का वादा काम कर गया है, गहलोत इसका क्रेडिट जरूर ले सकते हैं, लेकिन वहां ऑब्जर्वर के तौर पर पायलट की जिम्मेदारी पहले है।
राजस्थान में बदलाव को लेकर कहा जा रहा था कि गुजरात और हिमाचल के चुनाव के बाद हाईकमान फैसला कर सकता है। राजस्थान में अभी भारत जोड़ो यात्रा चल रही है। पायलट और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओें ने संकेत दिए थे कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद राजस्थान का फैसला होगा। ऐसे में अभी तो आसार नहीं है, लेकिन जनवरी के बाद कुछ स्थितियां बदल सकती है।
पायलट खेमा अब हाईकमान के सामने ये बात ताकत से उठाएगा कि अगर गहलोत राजस्थान के सीएम रहे तो गुजरात जैसी बुरी स्थिति यहां होगी। हालांकि कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष के पास होने से गहलोत जितने मजबूत दिख रहे थे, हाईकोर्ट के नोटिस के बाद ये परेशानी बढ़ी हुई है।