ज्येष्ठ अमावस्या के दिन विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य प्रदान करने वाला वट सावित्री व्रत किया जाता है। वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इस दिन पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखा जाता है। जबकि महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों में वट सावित्री व्रत 15 दिनों के बाद यानी ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा पर रखा जाता है। इस साल वट सावित्री के व्रत पर भी विशेष संयोग बन रहा है। इस बार वट सावित्री का व्रत 30 मई को रखा जाएगा।
पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री अपने पति सत्यवान को पुन: जीवन देने के लिए यमराज को भी विवश कर दिया था। उनकी पतिव्रता धर्म से प्रभावित होकर यमराज ने उनके पति सत्यवान को प्राणदान दिया था, जिससे वे मृत्यु के बाद फिर से जीवित हो गए थे। पतिव्रता सावित्री की कथा अमर हो गई और तब से हर साल ज्येष्ठ अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाने लगा।
वट सावित्री व्रत में सुहागिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पत्नियां बरगद की उम्र के समान ही पति की उम्र की कामना करती हैं। इस वृक्ष की पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन वटवृक्ष को जल से सींचकर उसके तने के चारों ओर परिक्रमा करते हुए कलावा बांधने की परंपरा होती है।
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